
भगवान श्री रामकृष्ण देव जी की 189वीं जयंती समारोह पर आयोजित 09 दिवसीय कार्यक्रम बडे़ ही हर्षोल्लास के साथ रामकृष्ण मठ, लखनऊ में मनाई जा रही है।
इसी क्रम में सायंकाल भगवान श्री रामकृष्ण की संध्या आरती के पश्चात रामकृष्ण मठ, लखनऊ के अध्यक्ष पूज्य स्वामी मुक्तिनाथानन्द की अध्यक्षता में चल रहे 04 दिवसीय भागवत सत्संग रामकृष्ण मठ, राजकोट से आए हुए स्वामी गुणेशानन्दजी ने श्रीमद् भागवत के ‘‘कपिल – देवहूति संवाद’’ में अहैतुकी भक्ति और उसका स्वरूप पर चर्चा करते हुए कहा कि
प्रेम से युक्त सेवा ही भक्ति है ।
जैसे गंगाजी की असंख्य धाराएं समुद्र में अवीरत बहती है वैसे जब साधक के मन की असंख्य धाराएं केवल परमात्मा में लगी रहे तब उसे भक्ति कहते है।
ऐसी भक्ति करने वाले भगवान से मोक्ष तक नहीं चाहते है।
भगवान उनको मुक्ति देना चाहते है पर वो मुक्ति भी नहीं चाहते है।
वो केवल भगवान से उनकी सेवा ही महते है ।
भक्त कहते है हमें मुक्ति कभी नहीं चाहिए हम केवल आपकी सेवा और आपके गुणगान गाते रहेंगे।
ये भक्तों की परम उच्च अवस्था है जहां भक्त मुक्ति को भी तुच्छ गिनता है
कार्यक्रम का संचालन श्री रामकृष्ण मठ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द महाराज ने किया।