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घुमंतू बन बागरिया जनजाति के उत्थान में शिक्षा की अलख जगा रहे शिक्षक की कहानी

शैक्षिक नवाचार -भारत संवाद के साथ, बदलती खानाबदोश जिंदगीयां

भारत संवाद/नागौर/मुरलीधर पारीक

नागौर /जिले के ग्रामीण शिक्षा को लेकर एक और जहां जनजाति क्षेत्र में सरकार की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं वहीं दूसरी और ऐसे शिक्षक भी है जो अपनी भूमि का बखुबी निर्वाहन करें रहे हैं उनमें से प्रमुख है

विष्णु दयाल शर्मा, अध्यापक राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, गाजू में कार्यरत हैं। बतौर शिक्षक, इनकी एक विशेष भूमिका रही है – घुमंतु बन बागरिया परिवारों जो अनुसूचित जनजाति में आती है जो समाज का वंचित और पिछड़ा वर्ग है के बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ना। जो समाज के मुख्य धारा से कोसों दूर है इनको शिक्षा से जोड़ना ताकि इनकी जीवन शैली में परिवर्तन करना ताकि यह बच्चे अपने परिचय का मोहताज न रहे ‘आदिम प्राचीन जनजाति’ से संबंधित हैं, जिन्हें समाज की सबसे अधिक वंचित और अत्यंत पिछड़ी जनजातियों में गिना जाता है।

यह जनजाति सदियों से शिकार-आधारित जीवन जीती है, लेकिन आज सरकारी प्रतिबंधों के चलते उनकी आजीविका के लिए संघर्षपूर्ण हो गया है। शिक्षा से इनका कोई वास्ता नहीं रहा। अध्यापक ने बताया कि जब मैं अपने विद्यालय राजकीय प्राथमिक विद्यालय चांदावर्तों की ढाणी गाजू जो गाजू से तीन किलोमीटर दूर जंगलों से होकर गुजरता, तो ये बच्चे खेलते नजर आते — यह दृश्य मन को बहुत दुखी करता वहीं से मन में यह ठान लिया कि इन बच्चों को शिक्षा से जोड़कर ही रहूंगा।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अंतर्गत इन बच्चों को स्कूल भेजने के लिए उनके माता-पिता से मिलकर निरंतर प्रयास किए। कई बार उनके डेरों तक जाकर इनके माता-पिता को समझाया कि शिक्षा उनके बच्चों का अधिकार है। कई असफल प्रयासों के बाद अंततः आठ बच्चों को विद्यालय में नामांकित कराने में सफलता मिली।

इन बच्चों के प्रवेश के बाद भी अनेक चुनौतियां सामने आई – जैसे पलायन, दस्तावेजों की कमी, सामाजिक हिचकिचाहट आदि। पलायन की समस्या के समाधान हेतु इन बच्चों में ऐसी शैक्षिक जागृति पैदा करने का प्रयास किया कि वे जहां भी जाएं, वहां स्कूल से जुड़ने की प्रवृत्ति रखें।

दस्तावेज़ की समस्या बहुत बड़ी बाधा थी। बच्चों के पास न जन्म प्रमाण पत्र नहीं थे, तथा ना ही आधार कार्ड बने हुए थे इससे वे न केवल सरकारी योजनाओं बल्कि ग्रामीण ओलंपिक जैसे खेलों में भाग लेने से वंचित हो रहे थे। तब इन्होंने पंचायत और ब्लॉक स्तर पर समन्वय बनाकर 5 बच्चों के जन्म प्रमाण पत्र और आधार कार्ड बनवाए।

वर्तमान में 11 बच्चे प्राथमिक विद्यालय चांदावर्तों की ढाणी गाजू में नियमित रूप से पढ़ाई कर रहे हैं। तथा उनके माता-पिता को भारत साक्षरता मिशन कार्यक्रम उल्लास के अंतर्गत पिछले सत्र डेरो पर जाकर के एक घंटा विद्यालय समय पश्चात साक्षर करन का भी संकल्प लिया तथा 25 अभिभावकों को साक्षर भी किया इस सत्र 7 और बच्चों को जोड़ने का प्रयास किया, जिनमें से 5 ने विद्यालय आना शुरू भी कर दिया है। यह कार्य मेरे लिए केवल एक ‘शिक्षण कार्य ही नहीं’ नहीं, बल्कि एक ‘कालातीत सामाजिक जिम्मेदारी’ मानता है

इस विषय पर आधारित इनका एक शोध *’घुमंतु जाति के लिए विशेष प्रयासों के बाद विद्यालय मैं बच्चों के नामांकन पर प्रभाव’ शीर्षक से प्रकाशित भी हुआ है, जो शोध सरिता में प्रकाशित है जिससे सामाजिक धरातल पर समाज को समझने और उनके समस्याओं को समझने मे बहुत मदद मिली। सर्वेशोध के दौरान 16 बच्चे अन्य विद्यालय में भी जुड़वाये

इनके प्रयासों का लक्ष्य यही है कि कोई बच्चा केवल अपनी जाति, गरीबी या दस्तावेज़ की कमी के कारण शिक्षा से वंचित न रहे — और वे अपनी पहचान खुद बना सकें।”इन परिवारों के लिए अध्यापक द्वारा अनेक कार्य भी किए गए

चार बार जिला स्तर पर जिला कलेक्टर द्वारा तथा एक बार राज्यपाल द्वारा भी राज्य स्तर पर राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान से सम्मानित किया गया

मुरलीधर पारीक नागौर

मुरलीधर पारीक भारत संवाद नागौर से हैं,मुरलीधर पारीक वर्तमान में भारत संवाद,TV वेब,सहित भारत संवाद न्यूज समूह के सभी प्लेटफार्म के लिए योगदान दे रहे हे..!

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