
ईश्वर की कृपा पाने के लिए इष्ट निष्ठा जरूरी – स्वामी मुक्तिनाथानंद
लखनऊ . संवाददाता अमित चावला
सोमवार की प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद ने बताया कि मन को लक्ष्य के प्रति अविचल रखने के लिए एवं मन को ईश्वर केंद्रित रखने के लिए कुछ आनुषंगिक साधन प्रयोजन होता है।
श्रीमद्भगवद्गीता के त्रयोदश अध्याय के दशम श्लोक के अनुसार अन्यतम साधन है, इष्ट निष्ठा।
स्वामी मुक्तिनाथानंद ने बताया कि संसार का आश्रय लेने के कारण साधक का देह अभिमान बना रहता है। यह देह अभिमान ईश्वर के ज्ञान में प्रधान बाधा है। इसको दूर करने के लिए भगवान ने यहां तत्व ज्ञान का उद्देश्य रखकर योग द्वारा अपनी अव्यभिचारिणी भक्ति करने का साधन बता रहे हैं।
तात्पर्य है कि भक्ति रूप साधन से भी देह अभिमान सुगमता पूर्वक दूर हो सकता है। भगवान के सिवाय दूसरे किसी से कुछ पाने की इच्छा न हो अर्थात भगवान के सिवाय मनुष्य, गुरु, देवता, शास्त्र आदि मेरे को उस तत्व का अनुभव करा सकते हैं तथा अपनी बल, बुद्धि, योग्यता से मैं उस तत्व को प्राप्त कर लूंगा – इस प्रकार किसी भी वस्तु आदि का सहारा न हो और भगवान की कृपा से ही मेरे को उस तत्व का अनुभव होगा – इस प्रकार केवल भगवान का ही सहारा हो यह भगवान में अनन्य योग होना चाहिए। अपना संबंध केवल भगवान के साथ ही हो दूसरे किसी के साथ किंचित मात्र भी अपना संबंध न हो यह भगवान में अव्यभिचारिणी भक्ति होना है। तात्पर्य है कि तत्व प्राप्ति का उपाय भी भगवान है और साध्य उपाय भी भगवान हैं। यही अनन्य योग द्वारा अव्यभिचारिणी भक्ति का होना है।
एक प्रार्थना में कहा गया है, “मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरा न कोई।” यद्यपि हम लोग गिरिधर गोपाल का भजन करते हैं, लेकिन हम लोग उसके साथ-साथ और भी साध्य वस्तु मन में रखते हैं। कारण एक कार्यकारी न रहे तो उसमें और भी किसी का आश्रय ले सकते हैं। इस प्रकार अगर हमें विभिन्न प्रकार का आश्रय लेने का संकल्प हो तो वो अनन्य योग नहीं हुआ।
जब हम ईश्वर को एक ही रूप में पाना चाहते हैं तो इसको इष्ट निष्ठा कहलाता है जब हम भगवान का भजन करते हैं तब उनमें हमारी भक्ति उत्पन्न होती है एवं भक्ति पकने से निष्ठा होती है। साधन जीवन में निष्ठा अत्यंत जरूरी है जिसके माध्यम से मन में दृढ़तापूर्वक एक ही लक्ष्य में जाने की इच्छा होती रहती है।
जब सब छोड़कर परमात्मा का एक ही रूप हम पकड़ने का प्रयास करते हैं, तब उसमें हमारी प्रार्थना गहरा होता है एवं गहरायी से व्याकुलतापूर्वक जब हम भगवान को पाना चाहते हैं वो पुकार भगवान सुन लेते हैं एवं तदनुसार हम पर कृपा करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
स्वामी मुक्तिनाथानंद ने कहा अतएव हमें भगवान के चरणों में सदैव प्रार्थना करना चाहिए ताकि हम अपने ईष्ट पर निष्ठा रखते हुए भगवान के शरण में भजन कर सके और इस जीवन में ही ईश्वर का दर्शन करते हुए जीवन सफल हो सके।