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रेत माफियाओं का कहर: रघुनाथपुरा कादीखेड़ा क्षेत्र में 4 से 6 करोड़ की रेत की अवैध खुदाई उजागर


रेत माफियाओं का कहर: रघुनाथपुरा कादीखेड़ा क्षेत्र में 4 से 6 करोड़ की रेत की अवैध खुदाई उजागर

गुना जिले की मधुसूदनगढ़ तहसील अंतर्गत रघुनाथपुरा कादीखेड़ा क्षेत्र में रेत माफियाओं का दुस्साहस दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है,प्रशासन की आंखों में धूल झोंकते हुए इन माफियाओं ने करीब 5 करोड़ रुपये की रेत की अवैध खुदाई और बिक्री कर दी है स्थानीय ग्रामीणों, पर्यावरणविदों और कुछ जागरूक नागरिकों के सहयोग से यह खुलासा हुआ है कि पिछले छह महीनों में इस क्षेत्र में हजारों ट्रैक्टर रेत गैरकानूनी तरीके से निकाली गई है।

रेत की लूट: सरकारी नियमों की खुली उड़ रही धज्जियां

राज्य सरकार द्वारा खनन को लेकर बनाए गए नियमों के अनुसार किसी भी प्रकार का खनन कार्य बिना लाइसेंस और अनुमति के नहीं किया जा सकता लेकिन रघुनाथपुरा कादीखेड़ा क्षेत्र में नियमों को ताक पर रखकर दिन-रात ट्रैक्टर और डंपर की मदद से रेत निकाली जा रही है। रेत माफिया खुलेआम जेसीबी मशीनों का उपयोग कर नदी के किनारे और नदी तल से रेत की खुदाई कर रहे हैं।

स्थानीय निवासियों का कहना है कि कई बार उन्होंने प्रशासन को शिकायत दी, लेकिन कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई इससे माफियाओं के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं रेत की लूट केवल एक पर्यावरणीय संकट नहीं है, बल्कि यह क्षेत्रीय प्रशासन और कानून व्यवस्था के लिए भी एक चुनौती बन गई है।

*5 करोड़ रुपये की अवैध कमाई का अनुमान*

स्थानीय सूत्रों और पार्वती नदी में हुई खुदाई के अनुसार, पिछले छह महीनों में रघुनाथपुरा और कादीखेड़ा क्षेत्र में लगभग 20,000 घन मीटर रेत निकाली गई है बाजार दर के अनुसार, एक घन मीटर रेत की कीमत औसतन 2000 से 5000 रुपये होती है,यदि इसका औसत मूल्य 2500 रुपये प्रति घन मीटर माना जाए, तो कुल रेत की कीमत 5.8 करोड़ रुपये बैठती है।

यह अवैध खुदाई बिना किसी रॉयल्टी, कर या सरकारी मंजूरी के की गई है, जिससे न केवल सरकार को भारी आर्थिक नुकसान हुआ है, बल्कि स्थानीय नदियों की पारिस्थितिकी भी खतरे में पड़ गई है।

प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट से पर्यावरणीय संकट

रेत माफियाओं की यह लूट केवल आर्थिक नहीं है, यह एक गहरी पर्यावरणीय त्रासदी है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की अवैध खुदाई से नदियों के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है। इससे जलस्तर गिरने का खतरा बढ़ता है और आसपास के गांवों में जल संकट पैदा हो सकता है।

रेत निकालने की प्रक्रिया में नदी की गहराई असंतुलित हो जाती है, जिससे नदियों के किनारे टूटने लगते हैं और आसपास की कृषि भूमि भी प्रभावित होती है यह जैवविविधता के लिए भी खतरा बनता जा रहा है कई पक्षियों, जलचर जीवों और पौधों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है।

*प्रशासन की चुप्पी सवालों के घेरे में*

सवाल यह उठता है कि इतने बड़े स्तर पर हो रही अवैध खुदाई की जानकारी प्रशासन को क्यों नहीं हुई? या फिर जानबूझ कर इसे नजरअंदाज किया जा रहा है?

स्थानीय नागरिकों का आरोप है कि इस पूरे रैकेट में कुछ प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिसकर्मियों की मौन सहमति है उनका कहना है कि रेत माफिया हर ट्रैक्टर के बदले “हफ्ता” या “कट” देने का काम करता है, जिससे अधिकारी आंखें मूंदे बैठे रहते हैं।

हालांकि, जब इस मुद्दे पर जिला प्रशासन से बात की गई तो उन्होंने जांच कराने की बात कही एसडीएम कार्यालय ने बयान में कहा, “हमें शिकायत मिली है, और जांच टीम गठित की गई है। जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।”

*ग्रामीणों का बढ़ता आक्रोश*

क्षेत्र के कई गांवों में अब इस अवैध खनन के खिलाफ आक्रोश पनपने लगा है ग्रामवासियों ने हाल ही में एक जनसभा आयोजित कर प्रशासन को चेतावनी दी कि यदि रेत माफियाओं पर लगाम नहीं कसी गई तो वे सड़क पर उतरकर आंदोलन करेंगे

“यह केवल रेत की बात नहीं है। हमारे बच्चों का भविष्य दांव पर लगा है अगर नदियां सूख जाएंगी तो खेती बर्बाद हो जाएगी हम चुप नहीं बैठेंगे।”

*कहां से आ रही मशीनें और ट्रक?*

जांच में यह भी सामने आया है कि इस पूरे रैकेट को एक संगठित गिरोह चला रहा है जो पास के जिलों से जेसीबी, पोकलेन मशीनें और ट्रक किराये पर लाता है ये मशीनें रात के समय में नदी के किनारे पहुंचाई जाती हैं और सुबह होने से पहले ही रेत की खुदाई कर ली जाती है।

इसके बाद रेत को पास के कस्बों और निर्माणाधीन शहरों में ऊंचे दामों पर बेचा जाता है इसका बड़ा हिस्सा बिना बिल के नकद में बेचा जाता है, जिससे टैक्स चोरी भी की जाती है।

*राजनीतिक संरक्षण के आरोप*

स्थानीय स्तर पर यह भी चर्चा है कि इस रैकेट को कुछ राजनीतिक हस्तियों का संरक्षण प्राप्त है हालांकि इस बात की पुष्टि आधिकारिक रूप से नहीं हुई है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि जब भी कार्रवाई होती है, माफियाओं को पहले ही खबर मिल जाती है।

स्थानीय युवराज सिंह मीणा का कहना है कि “यह रैकेट केवल खनन का नहीं, सत्ता और पैसे का खेल है जब तक ऊपर से संरक्षण मिलेगा, तब तक यह अवैध खनन बंद नहीं होगा।”

सामाजिक वरिष्ठ कार्यकर्ता
इस पूरे प्रकरण पर नजर रख रही ‘जल चेतना अभियान समिति’ नामक एक एनजीओ ने इस मामले को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में उठाने की तैयारी कर ली है स्थानीय प्रतिष्ठित समाजसेवक ने कहा, “हमने इस अवैध खनन की वीडियो फुटेज, तस्वीरें और टैक्टरों की जानकारी एकत्र की है,यदि प्रशासन कार्यवाही नहीं करता है तो हम न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे।”

*सरकारी प्रयास और आगे की राह*

राज्य सरकार ने हाल ही में अवैध खनन रोकने के लिए एक नई नीति की घोषणा की थी, जिसमें रेत खनन पर निगरानी के लिए ड्रोन और जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम लागू करने की बात कही गई थी। लेकिन इस क्षेत्र में इस तकनीक का कोई अता-पता नहीं है।

यदि सरकार को सचमुच इस संकट को रोकना है तो उसे जमीनी स्तर पर सक्रियता, पारदर्शिता और सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है साथ ही, स्थानीय समुदायों को शामिल कर एक सतत निगरानी तंत्र तैयार करना होगा।

*रघुनाथपुरा कादीखेड़ा क्षेत्र में हो रही रेत की यह अवैध खुदाई केवल एक आपराधिक मामला नहीं, बल्कि एक गंभीर पर्यावरणीय और प्रशासनिक संकट है* यदि समय रहते इस पर लगाम नहीं लगाई गई, तो यह क्षेत्र आने वाले वर्षों में जल संकट, कृषि पतन और सामाजिक असंतुलन से जूझता नजर आएगा अब समय आ गया है कि सरकार, प्रशासन और समाज मिलकर इस “रेत के सौदागरों” को जवाबदेह बनाए।

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