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विधायक राजेश शुक्ला ने आदिवासी बस्तियों में मनाया रक्षाबंधन बहनों को भेंट की साड़ियां, लाडली बहना योजना का भी मिला उपहार
बिजावर। रक्षाबंधन के पावन पर्व पर बिजावर विधानसभा के विधायक राजेश (बबलू) शुक्ला ने सामाजिक समरसता और भाई-बहन के अटूट रिश्ते को मजबूत करने की अनूठी पहल की। शुक्रवार को छतरपुर जिले की ग्राम पंचायत नयाताल और बिलगाय की आदिवासी बस्तियों में पहुंचकर उन्होंने आदिवासी बहनों के साथ रक्षाबंधन का त्योहार धूमधाम से मनाया। विधायक ने बहनों को राखी बंधवाने के साथ-साथ उपहार के रूप में साड़ियां भेंट कीं, जिससे उनके चेहरों पर खुशी की लहर दौड़ गई। इस अवसर पर मुख्यमंत्री की लाडली बहना योजना के तहत बहनों को त्योहार के उपहार स्वरूप 250 रुपये की अतिरिक्त राशि भी प्रदान की गई, जिसने उत्सव की खुशी को और बढ़ा दिया। जवाब में बहनों ने अपने प्रिय "बबलू भैया" को ढेर सारा प्यार, आशीर्वाद और शुभकामनाएं दीं, जिसने इस पर्व को और भी यादगार बना दिया। आदिवासी बस्तियों में विधायक का यह दौरा स्थानीय निवासियों के लिए एक विशेष क्षण बन गया। बहनों ने भावुक होकर कहा कि राजेश शुक्ला पहले ऐसे विधायक हैं, जिन्होंने रक्षाबंधन जैसे महत्वपूर्ण पर्व पर उनकी बस्ती में आकर उनके साथ त्योहार मनाया और उनका ख्याल रखा। उन्होंने बताया कि विधायक हर सुख-दुख में उनके साथ खड़े रहते हैं, जो उनके लिए सबसे बड़ी उपलब्धि है। ग्रामीणों ने विधायक की संवेदनशीलता और जनता के प्रति समर्पण की मुक्तकंठ से प्रशंसा की। विधायक राजेश शुक्ला ने कहा कि रक्षाबंधन भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है और यह समाज में एकता व प्रेम को बढ़ावा देता है। उन्होंने लाडली बहना योजना के तहत मिली 250 रुपये की राशि को मुख्यमंत्री की ओर से बहनों के लिए विशेष उपहार बताया, जो उनकी आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने आश्वासन दिया कि वे क्षेत्र के विकास और जनता की समस्याओं के समाधान के लिए निरंतर प्रयासरत रहेंगे। नयाताल और बिलगाय की आदिवासी बस्तियों में इस आयोजन ने रक्षाबंधन के पर्व को उत्साहपूर्ण बनाया और विधायक व जनता के बीच के रिश्ते को और गहरा किया। स्थानीय निवासियों ने विधायक के इस कदम और लाडली बहना योजना के उपहार को सामाजिक एकजुटता और जनप्रतिनिधि की जवाबदेही का शानदार उदाहरण बताया। आदिवासी समुदाय ने अपनी सांस्कृतिक परंपराओं को साझा करते हुए विधायक का गर्मजोशी से स्वागत किया, जिससे यह पर्व एक सामुदायिक उत्सव का रूप ले गया।