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पिच्छिका को रक्षा सूत्र बांध कर रक्षाबंधन पर्व एवं निर्वाणलाडू चढ़ाकर कर मोक्ष दिवस मनाया।

रिपोर्ट सुधीर बैसवार 

सनावद: –नगर में चातुर्मासरत युगल मुनिराज मुनि श्री विश्वसुर्य सागर जी महाराज एवं मुनिश्री श्री साध्य सागर जी महाराज के सानिध्य में वात्सल्य पर्व रक्षा बंधन पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया साथ ही लाडू समर्पित किया गया।समाज प्रवक्ता सन्मति जैनकाका ने बताया की नगर में चातुर्मास कर रही युगल मुनिराज के सानिध्य में रक्षा बंधन का पर्व बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जिसके अंतर्गत सर्वप्रथम पार्श्वनाथ बड़ा जैन मंदिर में श्रीजी का पंचामृत अभिषेक पूजन कर ग्यारहवे  तीर्थंकर श्रेयास नाथ भगवान का मोक्ष दिवस के अवसर पर लाड़ू चढ़ाया गया।

इस अवसर पर शांति धारा करने का शोभाग्य सहज जितेन्द्र कुमार जैन पन्धाना परिवार को प्राप्त हुवा एवम श्रेयांश नाथ भगवान के मोक्ष कल्याणक का लाडू सभी समाजजनों ने सामूहिक रूप से चढ़ाया । इसी क्रम में सभी समाजजनों ने मुनि श्री की पिच्छिका को रक्षा सूत्र बांधे।

रक्षा बंधन का महत्व बताते हुवे मुनि श्री साध्य सागर जी महाराज ने बताया की रक्षा बंधन वात्सल्य पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि आपस में जहा इन्द्रिय भाव का भाव है, आपस में जहा सद्भभावना का भाव है,आपस में जहां वात्सल्य का भाव हे वहा पर रिश्ते नाते जुड़ने वाले हे। रक्षा करों अपने शुभ वात्सल्य परिणामों की रक्षा करो अपने भक्तिमय साधनामय श्रद्धावान भावों की परिणामों की रक्षा करने का रक्षाबंधन दिन हैं । गुरुदेव ने उपदेश देते हुवे कहते हैं ऐसे बंधन में आज बंध जाना चाहिए की संकल्प लेता हु की जब भी कोई मुनिराज के ऊपर उपसर्ग आयेगा जब में विष्णु कुमार मुनिराज के जैसे रक्षा करने के लिए सदैव तैयार रहूंगा।जब कभी भी आर्यिका मां के ऊपर उपसर्ग आयेगा तो के रानी चेलना जैसे भावना से सदभावना व्यक्त करुगी। धर्म और धर्मात्मा को बचाने का संकल्प लेने का दिवस है।

 इसी क्रम में मुनि श्री विश्वसर्य सागर जी महाराज ने कहा कि जैन धर्म के 18 वें तीर्थंकर भगवान अरनाथ के तीर्थकाल में हस्तिनापुर में बलि आदि मंत्रियों ने कपट पूर्वक राज्य ग्रहण कर अकम्पनाचार्य सहित 700 जैन मुनियों पर घोर उपर्सग किया था, जिसे विष्णुकुमार मुनि ने दूर किया था। यह दिन श्रवण नक्षत्र, श्रावण मास की पूर्णिमा का था, जिस दिन अकम्पनाचार्य आदि 700 मुनियों की रक्षा विष्णुकुमार द्वारा हुई। विघ्न दूर होते ही प्रजा ने खुशियां मनाई, श्री मुनि संघ को स्वास्थ्य के अनुकूल आहार दिया, वैयावृत्ति की, तभी से जैन परंपरा में रक्षाबंधन मनाया जाता है। रक्षाबंधन के दिन जैन मंदिरों में श्रावक-श्राविकायें जाकर धर्म और संस्कृति की रक्षा के संकल्प पूर्वक रक्षासूत्र बांधते हैं और रक्षाबंधन पूजन करते हैं। इस अवसर पर सभी स्थानीय समाज जन उपस्थित थे।

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