
खंडवा के समस्त दिगंबर जैन मंदिरों में धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जा रहा है पर्युषण पर्व। मीठे वचन झुकी हुई दृष्टि और उपकार का भाव ही सच्ची माधवता है, ,,उपाध्यक्ष श्री विशुद्ध सागर,,
खंडवा। जैन धर्म के पर्युषण पर्व इन दिनों शहर के समस्त दिगंबर जैन मंदिरों में मनाए जा रहे हैं। पर्व के दौरान प्रतिदिन प्रात काल भगवान का अभिषेक एवं शांति धारा के साथ दसलक्षण धर्म की पूजा श्रद्धालुओं द्वारा की जा रही है। मुनि सेवा समिति के प्रचार मंत्री सुनील जैन प्रेमांशु चौधरी ने बताया कि पर्व के दूसरे दिन उत्तम मार्दव धर्म की पूजा अर्चना की गई। हर्ष का विषय है कि पर्व के दौरान उपाध्याय श्री विश्रुत सागर एवं निर्वेद सागर जी महाराज का सानिध्य में प्राप्त हो रहा है प्रतिदिन सराफा पोरवाड़ दिगम्बर जैन धर्मशाला में मुनि संघ के प्रवचन आयोजित हो रहे हैं वही रात्रि में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी चल रहा है। शुक्रवार को उत्तम मार्दव धर्म पर प्रवचन देते हुए उपाध्याय विश्रुत सागर जी महाराज ने कहा कि मार्दव धर्म का अर्थ है -विनम्रता। मीठे वचन, झुकी हुई दृष्टि और उपकार का भाव ही सच्ची मार्दवता है। यह डर, लोभ या कमजोरी से नहीं, बल्कि सामर्थ्य होने पर भी नम्र बने रहने से प्रकट होती है। अहंकार चाहे कितना भी गुणी और शक्तिशाली व्यक्ति हो, उसे पतन की ओर ले जाता है। रावण इसका उदाहरण है – ज्ञान, शक्ति और संपन्नता होते हुए भी अहंकार ने उसे नरक का अधिकारी बना दिया। मार्दव हमें सिखाता है कि अपने भीतर के लोभ, ईर्ष्या और क्रोध रूपी रावण को जलाकर, प्रेम, सहयोग और स्नेह रूपी राम को स्थान दें। यही धर्म आत्मा को निर्मल और मोक्षमार्ग का योग्य बनाता है। उपाध्याय श्री ने कहा कि कोमलता का नाम मार्दव है। यह धर्म हमें मान-अभिमान को त्याग कर के मन में कोमलता लेन को कहता है क्यूंकि जब मन में मान आ जाता है तो उसमें एक अकड़ सी उत्पन्न हो जाती है जिसके परिणामस्वरुप व्यक्ति अपने को बड़ा और दुसरो को छोटा समझने लगता है। उसमें समुचित विनय का आभाव हो जाता है। मान के ही कारण कई महान हस्तिया भी अपना नाम धूमिल कर चुकी है। इसलिए अपनी किसी भी छोटी-बड़ी वस्तु, ज्ञान, रूप, काया, धर्म, सोच, बल, दान, ज़मीन-जायदाद, संपत्ति, इत्यादि बातों पर मान नहीं करना चाहिए; समय के साथ ये सभी नष्ट हो जायेंगे।
अतः मान त्याग कर महान बने।