
लखनऊ, 24 जून। उर्दू साहित्य में आधुनिकता के विरोध और उत्तर-आधुनिकता की जटिल प्रक्रिया ने आलोचना को उस मार्ग से भटका दिया जिसे हाली से लेकर एहतेशाम हुसैन तक ने बनाया था।
ये विचार प्रख्यात उर्दू समालोचक प्रो.अली अहमद फात्मी ने कैफ़ी आज़मी अकादमी निशातगंज में आयोजित समारोह में व्यक्त किये। इस अवसर पर प्रो.शारिब रुदौलवी मेमोरियल अवार्ड- 2024 से एक हजार से ज्यादा किताबें लिखने वाले केन्द्रीय विश्वविद्यालय हैदराबाद के प्रो.सैयद मुजाविर हुसैन को और समाजसेवी चिकित्सक डा.निहाल रजा को लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से इरा यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो.अब्बास अली मेहंदी और अन्य अतिथियों ने शाल व स्मृति चिह्न इत्यादि देकर नवाजा।
प्रो.शारिब रुदौलवी अवार्ड कमेटी की ओर से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एस कमर हसन रिज़वी की अध्यक्षता और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मोहम्मद काज़िम के संचालन में चले समारोह में प्रो. शारिब स्मृति व्याख्यान में इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रो.अली अहमद फातमी ने प्रो. शारिब को उर्दू और हिंदी दोनों भाषाओं के विद्वानों के बीच लोकप्रिय बताया। प्रो. शारिब ने अकादमिक और साहित्यिक योगदान के संग ही उर्दू संस्कृति के प्रचार प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे उन अदबी संगठनों में सक्रिय रहे, जिनका उद्देश्य उर्दू साहित्य और संस्कृति को बढ़ावा देना था। प्रगतिशील आलोचना और आलोचना का नया परिदृश्य विषय पर व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा कि प्रगतिशील आलोचना ने हाली, आजाद और शिब्ली जैसे आलोचकों की तार्किक और बौद्धिक परम्परा को उभारा, जबकि आज की आलोचना विचारों में उलझकर रचनात्मक साहित्य से दूरी बना रही है।
सम्मानित हुए प्रो.सैयद मुजाविर हुसैन ने शुक्रिया अदा करने के साथ कहा कि प्रो.शारिब रुदौलवी जैसे विद्वानों को याद करने के लिए ऐसे आयोजन बराबर होने चाहिए।
सम्मानित विद्वानों का परिचय कराने वाली प्रो. रेशमा परवीन ने शारिब रुदौलवी की आलोचना दृष्टि पर कहा कि उनके लिए आलोचना का अर्थ मात्र किसी विचारधारा की पैरवी करना नहीं, बल्कि किसी कृति को कलात्मक और सौंदर्यशील कसौटी पर भी कसना ज़रूरी था। यही दृष्टिकोण उन्हें अन्य प्रगतिशील आलोचकों से अलग बनाता है। लाइफ़टाइम अवार्ड पाने वाले डॉ.निहाल रज़ा रुदौलवी का मानना था कि प्रो.शारिब के जलसे में मिला यह सम्मान मेरे लिए बहुत बड़ा है। हम शारिब साहब की याद में रुदौली में एक सभागार बनवाएंगें। डा.साबिरा हबीब ने कहा कि तकलीफों से भरी जिंदगी होते हुए भी कभी कोई शिक़ायत नहीं की, न किसी की बुराई। उनकी रचनाएं भी यह बात साफ करती हैं। प्रो.नलिन रंजन सिंह ने संस्मरण रखते हुए प्रो.शारिब को हिन्दी उर्दू का सेतु बताया।
इससे पहले अपने स्वागत सम्बोधन में डा.खान फारूक ने कहा कि प्रो.शारिब शागिर्दों को अपने बच्चों की तरह ख्याल रखते थे। यहां कोलंबिया विश्वविद्यालय न्यूयॉर्क के डा.तिम्साल मसूद,
कानपुर के प्रो.खान अहमद फारूक आदि ने भी विचार रखे।
समारोह में कर्रार जैदी, यास्मीन अंजुम, प्रो.रूपरेखा वर्मा, प्रो.रमेश दीक्षित, प्रो.रेशमा परवीन, शबीब हसनैन, शाहिद हसनैन, हारुन रशीद, कमर जहां, डा.अनीस अंसारी, तकदीस फातिमा, डा.मूसी रज़ा, एस आसिम रजा, डा.एसएचए काज़मी और बड़ी तादाद में महाविद्यालयों के विद्यार्थी उपस्थित थे।
कार्यक्रम में शोआ फातिमा एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट एंड सोसाइटी शोआ फातिमा गर्ल्स इंटर कॉलेज का सहयोग रहा।