
नागौर की पान मेथी – एक सुगंधित यात्रा
नागौर की पान मेथी को "हरा सोना" कहा जाता है।

नागौर, राजस्थान (3 जून 2025)
Bharat Sanwad/Nagaur/Murlidhar pareek
राजस्थान के नागौर जिले की पान मेथी, जिसे कसूरी मेथी के नाम से भी जाना जाता है, न केवल भारत बल्कि विश्व भर में अपनी अनूठी सुगंध और स्वाद के लिए प्रसिद्ध है। यह मसाला, जो हर भारतीय रसोई में अपनी जगह बनाए हुए है, नागौर की मिट्टी और मेहनत का प्रतीक है। आइए, इसकी शुरुआत से लेकर आज तक की कहानी को एक न्यूज़ डॉक्यूमेंट्री के रूप में जानते हैं।
⭐पान मेथी की शुरुआत: एक ऐतिहासिक झलक
पान मेथी की खेती की शुरुआत नागौर जिले के ताऊसर गांव से मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि भारत में इसकी खेती का इतिहास पाकिस्तान के कसूर शहर से जुड़ा है, जहां इसे “कसूरी मेथी” के नाम से जाना गया।, विभाजन से पहले, कसूरी मेथी की खेती पंजाब और राजस्थान में शुरू हुई, लेकिन नागौर की जलवायु और मिट्टी ने इसे एक अलग पहचान दी।
1970 के दशक में, मसाला उद्योग के दिग्गज महाशय धर्मपाल गुलाटी (MDH) ने नागौर में पान मेथी की संभावनाओं को पहचाना।, उन्होंने इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए यहां फैक्ट्रियां स्थापित कीं, जिसके बाद यह क्षेत्र मेथी उत्पादन का केंद्र बन गया। आज नागौर में करीब 4,000 किसान और 3,500 हेक्टेयर भूमि पर इसकी खेती हो रही है।,
⭐नागौर की मिट्टी और जलवायु: प्रकृति का वरदान
नागौर की पान मेथी की गुणवत्ता का राज इसकी जलवायु और मिट्टी में छिपा है। थार मरुस्थल का हिस्सा होने के बावजूद, नागौर की जलोढ़, रेतीली और दोमट मिट्टी पान मेथी के लिए आदर्श है।, यहां का खारा पानी भी इस फसल को प्रभावित नहीं करता, बल्कि इसकी सुगंध को और निखारता है।
बुवाई अक्टूबर से नवंबर तक होती है, और फसल 8 महीने में तैयार हो जाती है।, किसान ऑर्गेनिक तरीकों का उपयोग करते हैं, जैसे कि नेमाराम (68 वर्ष), जो बिना डीएपी या यूरिया के खेती करते हैं। खेत की तीन बार जुताई के बाद फसल को सर्दियों में तैयार किया जाता है, जिसे बाद में सुखाकर मसाले के रूप में बेचा जाता है।
⭐आर्थिक महत्व: हरा सोना
नागौर की पान मेथी को “हरा सोना” कहा जाता है। यह फसल न केवल स्थानीय किसानों के लिए आय का प्रमुख स्रोत है, बल्कि सालाना एक अरब रुपये का कारोबार भी करती है। बाजार में इसकी कीमत 150-200 रुपये प्रति किलो तक होती है, और मसाला कंपनियों द्वारा उपयोग के बाद इसके दाम चार गुना तक बढ़ जाते हैं।
नागौर में मूंडवा रोड पर अस्थायी मंडी की शुरुआत ने किसानों को उनकी फसल के उचित दाम दिलाने में मदद की है। यहां सुबह 11 बजे से शाम 5 बजे तक व्यापारी बोली लगाते हैं, जिससे किसानों को बेहतर मुनाफा मिलता है।
⭐जीआई टैग: एक नई पहचान
लंबे समय तक नागौर की पान मेथी को “कसूरी मेथी” के नाम से जाना गया, जिससे इसकी स्वदेशी पहचान प्रभावित हुई।, लेकिन हाल ही में, नाबार्ड और राजस्थान एसोसिएशन ऑफ स्पाइसेस के प्रयासों से इसे “नागौरी पान मेथी” के रूप में मान्यता मिली। 3 जून 2025 को भारत सरकार ने इसे जीआई टैग प्रदान किया, जिसका श्रेय नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल के लगातार प्रयासों को दिया जा रहा है।,
यह जीआई टैग नागौर के किसानों और व्यापारियों के लिए गर्व का विषय है। इससे न केवल स्थानीय उत्पाद को वैश्विक पहचान मिलेगी, बल्कि किसानों को बेहतर दाम भी प्राप्त होंगे।
💫स्वास्थ्य लाभ और उपयोग
पान मेथी सिर्फ स्वाद के लिए ही नहीं, बल्कि अपने औषधीय गुणों के लिए भी जानी जाती है। इसमें आयरन, कैल्शियम, विटामिन ए और फाइबर प्रचुर मात्रा में होते हैं, जो पाचन, सर्दी-खांसी और डायबिटीज नियंत्रण में मदद करते हैं। देश के बड़े होटल और रेस्तरां इसकी सुगंध के लिए इसका उपयोग करते हैं, और यह विदेशों में भी निर्यात की जाती है।
⭐चुनौतियां और भविष्य
हालांकि पान मेथी की खेती लाभकारी है, लेकिन जोधपुर जैसे अन्य क्षेत्रों में भी इसकी खेती शुरू होने से नागौर का एकाधिकार टूट रहा है। इसके अलावा, कुछ क्षेत्रों में खारे पानी के कारण किसान पालक जैसी अन्य फसलों की ओर रुख कर रहे हैं। फिर भी, उन्नत तकनीकों, जैसे मशीन से कटाई और कम खर्च में अधिक उत्पादन, ने किसानों की आय बढ़ाने में मदद की है।
नागौर कृषि विश्वविद्यालय और नाबार्ड जैसे संगठन इसे और बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे हैं।, भविष्य में, जीआई टैग और वैश्विक मांग के साथ, नागौरी पान मेथी का बाजार और विस्तार होने की उम्मीद है।
⭐निष्कर्ष
नागौर की पान मेथी ने अपनी सुगंध और स्वाद से न केवल रसोई को समृद्ध किया, बल्कि हजारों किसानों की आजीविका को भी मजबूत किया। ताऊसर गांव से शुरू हुआ यह सफर आज विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ रहा है। जीआई टैग के साथ, यह “हरा सोना” अब और चमकेगा, और नागौर का नाम गर्व से उभरेगा।
भारत संवाद/नागौर/मुरलीधर पारीक