
ब्यूरो किशोर सिंह राजपूत शाजापुर
श्रीराम मंदिर, बज्जाहेड़ा में आज से आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के प्रथम दिवस पर श्री संदीप जी व्यास (पतोली वाले) ने अपने प्रवचनों से भक्तों को आध्यात्मिक मार्ग की ओर प्रेरित किया। उनके वचनों में गहन दार्शनिकता और भक्ति का समन्वय था, जो श्रोताओं के हृदय को स्पर्श करने में सक्षम रहा। कथा के प्रारंभ में श्री संदीप जी ने मानव जीवन की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मानव जीवन अत्यंत दुर्लभ है और यह एक ऐसा अवसर है, जो हमें परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। यह देह केवल मांस और हड्डियों का समूह नहीं, अपितु एक ऐसा यंत्र है, जो सोचने-समझने और अच्छे-बुरे कर्मों की पहचान करने की शक्ति रखता है। यह वह अवसर है, जिसके माध्यम से हम परमात्मा के समीप पहुँच सकते हैं।श्री संदीप जी ने अपने प्रवचन में कर्म को मानव जीवन की सच्ची पूँजी बताया। उन्होंने कहा कि हमारे अच्छे कर्म ही वह धन हैं, जो हमें इस लोक और परलोक दोनों में सुख प्रदान करते हैं। कर्मों की शुद्धता और सत्यनिष्ठा ही वह आधार है, जो हमें परमात्मा के निकट ले जाता है। उन्होंने भक्तों को प्रेरित करते हुए कहा कि सत्य का मार्ग कभी नहीं छोड़ना चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी विपरीत क्यों न हों। सत्य का मार्ग कठिन हो सकता है, परंतु यही वह पथ है जो हमें आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।उन्होंने भक्त नृसिंह मेहता, मीराबाई और प्रहलाद जैसे महान भक्तों के उदाहरण प्रस्तुत किए, जिन्होंने अपने जीवन में सत्य और भक्ति के मार्ग को अपनाकर परमात्मा की कृपा प्राप्त की। नृसिंह मेहता ने अपनी भक्ति और सत्यनिष्ठा से समाज की आलोचनाओं का सामना करते हुए भी भगवान की भक्ति में लीन रहकर जीवन को सार्थक किया। मीराबाई ने सांसारिक बंधनों को त्यागकर श्रीकृष्ण की भक्ति में अपने जीवन को समर्पित किया और प्रहलाद ने अपने पिता हिरण्यकशिपु की क्रूरता के बावजूद भगवान विष्णु के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा बनाए रखी। इन भक्तों के जीवन से प्रेरणा लेते हुए श्री संदीप जी ने कहा कि सच्चा भक्त वही है, जो हर परिस्थिति में परमात्मा पर विश्वास रखता है।उन्होंने यह भी बताया कि जीवन में दुख का आना स्वाभाविक है, परंतु यह दुख परमात्मा की उपस्थिति का संकेत है। दुख के क्षणों में हमें यह विश्वास रखना चाहिए कि परमात्मा हमारे आसपास ही हैं और हमारी हर कठिनाई में हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं। यह विश्वास हमें साहस और धैर्य प्रदान करता है।कथा के इस प्रथम दिवस का समापन मुख्य यजमान धीरप सिंह राजपूत और उनकी पत्नी द्वारा व्यासपीठ के पूजन के साथ हुआ। उन्होंने भक्ति और श्रद्धा के साथ आरती की और प्रसाद का वितरण किया। इस आयोजन में उपस्थित भक्तों ने कथा के माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया और सत्य व भक्ति के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया। यह कथा न केवल भक्ति का संदेश देती है, बल्कि हमें अपने कर्मों को शुद्ध और सत्यनिष्ठ बनाने की प्रेरणा भी प्रदान करती है।