
आज रामकृष्ण मठ, निराला नगर, लखनऊ में बुद्ध पूर्णिमा उत्सव बडे ही हर्षोल्लास के साथ रामकृष्ण मन्दिर में मनाया गया.
कार्यक्रम की शुरूआत श्री श्री ठाकुर जी की मंगल आरती एवं प्रार्थना के साथ हुयी। सुबह बुद्धदेव द्वारा रचित प्रज्ञापारमिता सूत्रम का पाठ स्वामी इष्टकृपानन्द के नेतृत्व में हुई।
प्रातःस्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज द्वारा सत प्रसंग हुआ।
श्री श्री रामकृष्णजी की सन्ध्या आरती के पश्चात भगवान बुद्धदेव की पूजा एवं आरती स्वामी कृष्णपदानंद के निर्देशन में सम्पन्न हुआ तथा स्वामी ईष्टकृपानंद के नेतृत्व में श्याननाम संकीर्तन हुआ।
तत्पश्चात रामकृष्ण मठ, लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द महाराज ने भगवान गौतम बुद्ध एवं बौद्ध धर्म पर प्रवचन दिया उन्होंने कहा कि वर्ष की सबसे महत्वपूर्ण पूर्णिमाओं में से एक वैशाख पूर्णिमा है जिसे बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। जो अपनी बुद्धि से ऊपर है वह बुद्ध है।
बौद्ध धर्म में, बुद्ध को एक दिव्य प्राणी के रूप में नहीं देखा जाता है – कम से कम पूरी तरह से नहीं। बौद्धों द्वारा बुद्ध को आम तौर पर एक जाग्रत इंसान के रूप में देखा जाता है जिसने अस्तित्व की वास्तविकता को देखा और दूसरों को सिखाया कि इस जीवन में पीड़ा से कैसे बचा जाए जैसा कि उन्होंने किया था।
18 मार्च 1900 को सैन फ्रांसिस्को में दिए गए एक व्याख्यान में, स्वामी विवेकानन्द ने बुद्ध के साथ अपने अनूठे रिश्ते को इन शब्दों में परिभाषित कियाः ’अपने पूरे जीवन में मुझे बुद्ध से बहुत प्यार रहा है, लेकिन उनके सिद्धांत से नहीं। मेरे मन में किसी भी अन्य की तुलना में उस चरित्र के लिए अधिक आदर है – वह साहस, वह निडरता, और वह जबरदस्त प्रेम! उन्होंने बुद्ध को ’अब तक का सबसे महान व्यक्ति’ कहा। सिस्टर निवेदिता ने बाद में इसे ’बुद्ध के प्रति उनकी भावुक व्यक्तिगत आराधना’ कहा।
स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि ईश्वर के साक्षात अवतार भगवान बुद्ध के आगमन का मुख्य उद्देश्य मानव के अन्दर मे सुप्त देवत्व गुण जगाना था। स्वामीजी ने कहा कि भगवान मनुष्य शरीर धारण करते हैं ताकि मनुष्य भगवान जैसा बन सकें। हिंदू धर्म में बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार माना जाता है।
उन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध ने चार आर्य सत्य का अविष्कार किया था – 1. दुःख है, 2. दुःख का कारण है, 3. दुःख का निदान है, 4. वही मार्ग है जिससे दुख का निदान होता है। वह संसार त्याग करके सारे दुनिया से दुःख का निदान करने के लिए एक अभिनव धर्म का प्रवर्तन किये जिसके बारे में स्वामी विवेकानन्द ने कहा था बौद्ध धर्म ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण धर्म है क्योंकि वह संसार में घटित होने वाला वृहत्तम धर्मिक आन्दोलन था, मानव समाज पर फूट पड़ने वाली विराटतम आध्यात्मिक लहर थी.
प्रवचन के समापन के पश्चात उपस्थित सभी भक्तों को प्रसाद वितरण के साथ हुआ।