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*पापा का सपना मेरी आंखों में है..शासकीय स्कूल की राधिका मीणा ने 10वीं में 94.2% अंक प्राप्त कर रचा सफलता का इतिहास*

युवराज सिंह मीणा गुना/मधुसूदनगढ़

*पापा का सपना मेरी आंखों में है..शासकीय स्कूल की राधिका मीणा ने 10वीं में 94.2% अंक प्राप्त कर रचा सफलता का इतिहास*

कभी-कभी जीवन की सबसे बड़ी कठिनाइयाँ ही हमें हमारे सबसे मजबूत रूप से परिचित कराती हैं,ऐसा ही कुछ कर दिखाया है मधुसूदनगढ़ की बेटी राधिका मीणा ने शासकीय विद्यालय में अध्ययनरत राधिका ने 10वीं की बोर्ड परीक्षा में 94.2% अंक प्राप्त कर न केवल अपने माता-पिता का सपना साकार करने की दिशा में पहला कदम बढ़ाया है, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गई हैं।

राधिका का जीवन एक आम छात्रा जैसा नहीं रहा,उनके संघर्ष, आत्मबल और परिवार के सहयोग की कहानी हर उस इंसान के दिल को छू जाती है, जो कभी किसी कठिन दौर से गुज़रा है,
राधिका स्वर्गीय तकत सिंह मीणा की पुत्री हैं उनके पिता श्री तकत सिंह जी मीणा मधुसूदनगढ़ गल्ला मंडी में एक जाने-माने व्यापारी थे, जो अपनी ईमानदारी और सच्चाई के लिए प्रसिद्ध थे जीवन के हर मोड़ पर उन्होंने सच्चाई का साथ दिया, और समाज में एक आदर्श व्यापारी के रूप में प्रतिष्ठित रहे।

*पिता के बिना जीवन की शुरुआत*

करीब दस वर्ष पहले जब राधिका महज एक नन्हीं बच्ची थीं, तब उनके जीवन में एक ऐसा तूफान आया, जिसने सब कुछ बदल दिया उनके पापा का असमय निधन हो गया,
एक बच्ची के लिए पिता का साया उठ जाना उस उम्र में एक बहुत बड़ा सदमा होता है मगर राधिका की मां श्रीमती रामबाई मीणा ने हार नहीं मानी,उन्होंने अपने बच्चों के लिए पिता का स्थान भी लिया और मां के रूप में भी अपनी जिम्मेदारियों को पूरी ईमानदारी और ममता के साथ निभाया।

राधिका कहती हैं, “मैंने बहुत छोटी उम्र में पापा को खो दिया। तब मुझे समझ नहीं आता था कि अब क्या होगा, लेकिन मेरी मां ने कभी मुझे हार मानने नहीं दी, मेरी बड़ी बहनों और भाई ने हर कदम पर मुझे सहारा दिया जब लोग कहते थे कि बेटियाँ अकेले कुछ नहीं कर सकतीं, तब मेरे परिवार ने मुझमें विश्वास जताया।”

*शासकीय स्कूल में की पढ़ाई कर बनी टॉपर*

राधिका ने किसी निजी स्कूल में पढ़ाई नहीं की उन्होंने एक साधारण सरकारी स्कूल में पढ़ाई की, जहाँ सुविधाएं सीमित थीं, मगर उनका आत्मविश्वास असीम था उनका कहना है कि संसाधनों की कमी कभी उन्हें पीछे नहीं कर सकी, क्योंकि उनके पास जो सबसे बड़ा संबल था, वो था – परिवार का विश्वास और खुद की मेहनत।

10वीं कक्षा के परिणामों में राधिका ने 94.2% अंक अर्जित कर यह साबित कर दिया कि अगर लगन सच्ची हो और लक्ष्य स्पष्ट हो, तो कोई भी परिस्थिति आपको रोक नहीं सकती।

*बचपन से देखा वकील बनने का सपना*

राधिका का सपना बचपन से ही एक वकील बनने का रहा है जब वह छोटी थीं, तब उन्होंने कई बार समाज में अन्याय और अज्ञानता को नजदीक से देखा। तभी से उन्होंने निश्चय कर लिया था कि वह कानून की पढ़ाई करेंगी और लोगों को न्याय दिलाने में मदद करेंगी वह कहती हैं, “मुझे लगता है कि एक ईमानदार वकील समाज को बहुत कुछ दे सकता है मैं चाहती हूं कि हर उस व्यक्ति को आवाज़ मिले, जो अन्याय का शिकार है।”

*पिता का सपना, बेटी की आंखों में जिंदा*

राधिका का सपना केवल उनका अपना नहीं है, वह अपने पिताजी के अधूरे सपनों को पूरा करने का संकल्प भी अपने साथ लिए चल रही हैं। उन्होंने भावुक होकर कहा, “मेरे पापा चाहते थे कि मैं पढ़-लिखकर कुछ बनूं। जब मैंने बोर्ड में अच्छे अंक प्राप्त किए, तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैं पापा के उस सपने के थोड़ा और करीब पहुंची हूं। मैं वादा करती हूं कि मैं वकील बनकर उनका सपना जरूर पूरा करूंगी।”

*परिवार बना सबसे बड़ा सहारा*

राधिका के इस सफर में उनके भाई अजय सिंह मीणा और दोनों बड़ी बहनों का योगदान भी अतुलनीय है उन्होंने हमेशा राधिका को यह अहसास दिलाया कि वह अकेली नहीं है उनकी बड़ी बहनों ने उन्हें पढ़ाई में मदद की, समय-समय पर प्रेरित किया, और हर परीक्षा में उनका मनोबल बढ़ाया।

राधिका कहती हैं, “मेरे लिए मेरे भाई-बहन किसी शिक्षक से कम नहीं हैं जब मैं थक जाती थी, टूटने लगती थी, तो यही लोग मुझे उठाते थे,और मेरी मां की दुआएं… वो तो मेरे लिए अमूल्य हैं उनकी ममता और आशीर्वाद ही मेरी असली ताकत है।”

*सामाजिक संदेश और प्रेरणा*

राधिका की यह उपलब्धि केवल एक व्यक्तिगत जीत नहीं है, यह एक सामाजिक संदेश भी है – कि बेटियाँ किसी से कम नहीं हैं, कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे भी इतिहास रच सकते हैं, और कि अगर परिवार साथ हो तो कोई भी बच्चा जीवन की सबसे कठिन चुनौतियों को पार कर सकता है।

*भविष्य की योजना*

अब राधिका 11वीं में प्रवेश लेकर कानून की पढ़ाई की तैयारी में जुटी हैं वह आगे चलकर प्रतिष्ठित लॉ कॉलेज में दाखिला लेकर एक सशक्त वकील बनना चाहती हैं उनका लक्ष्य समाज में न्याय की लड़ाई लड़ना और जरूरतमंदों को उनका हक दिलाना है।

*स्थानीय लोग भी कर रहे सराहना*

राधिका की इस सफलता की खबर जैसे ही फैली, पूरे क्षेत्र में खुशी की लहर दौड़ गई। स्थानीय शिक्षकों और विद्यार्थियों ने राधिका को बधाई दी और उनके उज्जवल भविष्य की कामना की कई लोगों ने कहा कि राधिका जैसे बच्चों की कहानियों को सामने लाना बेहद जरूरी है, ताकि अन्य छात्र-छात्राएं भी प्रेरणा ले सकें।

*राधिका की कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन चाहे जितना कठिन क्यों न हो, अगर मन में दृढ़ विश्वास हो, परिवार का साथ हो और आंखों में सपने हों, तो कोई भी राह नामुमकिन नहीं होती राधिका ने सिर्फ अच्छे अंक नहीं हासिल किए, बल्कि यह सिद्ध कर दिया कि वह पापा की ‘लाड़ली’ ही नहीं, उनके अधूरे ख्वाबों की ‘वारिस’ भी हैं*

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