
निमाड़ की भीषण गर्मी में कठोर तप,कंडों को आग लगाकर बैठे संत,रमा रहे धुनी,31 मई से 77 वा विष्णु महायज्ञ होगा शुरू
बड़वाह कुलदीप सिंह अरोरा
निमाड़ की भीषण गर्मी में कठोर तप,कंडों को आग लगाकर बैठे संत,रमा रहे धुनी,31 मई से 77 वा विष्णु महायज्ञ होगा शुरू
सुंदरधाम आश्रम में संतो की कठिन साधना: भीषण गर्मी में सिर पर रखते है जलता खप्पर,चार माह से चल रही तपस्या,5 जून को समाप्त होगी
बड़वाह… “सीताराम..सीताराम के नामो से गूंज उठा”है,..संत,महंतों की तपो भूमि रहे मां नर्मदा के उत्तर तट स्थित सुन्दर धाम आश्रम| यहा पर 31 मई से 5 जून तक 77 वा विष्णु महायज्ञ शुरू होगा। जिसमे देशभर के तीर्थ क्षेत्रों से संत पहुचेगे। क्षेत्र में हो रहे इस ऐतिहासिक धार्मिक अनुष्ठान को लेकर भव्य स्तर पर तैयारियां चल रही है। जिनके दर्शन का पूण्य लाभ निमाड़ क्षेत्र के सभी भक्तों को देखने को मिलेगा। वही सुंदर धाम आश्रम में बसंत पंचमी से संत आग के घेरे में बैठकर बल्कि सिर पर खप्पर में कंडो में अग्नि प्रज्वलित रखकर साधना में लीन है। यहां आने वाले श्रद्धालु भी इस कठिन साधना को देख संतो के समक्ष नतमस्तक हो जाते है। संतो की इस कठिन तपस्या को कोठ खप्पर धुनी तप कहा जाता है। जिसमें साधक कई घंटे तक अग्नि के बीच बैठकर साधना करते है। यहा पर प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर महामंडलेश्वर श्रीश्री 1008 बालकदास महाराज, श्रीश्री 108 नारायणदास महाराज के दर्शन के साथ उपस्थित अन्य संतो से आशीर्वाद प्राप्त कर रहे है।आश्रम में सुबह से दोपहर तक इन संतों को यहां कोठ-खप्पर धुनी तप करते देखा जा सकता है। यह कठिन तपस्या बंसत पंचमी से शुरू होकर 4 माह के बाद गंगा दशमी पर समाप्त होती है। वही आश्रम में “अति प्राचीन साक्षात्कारी हनुमान मंदिर परिसर में “सीताराम..सीताराम के नामो से क्षेत्र गूंज उठा है,यहा पर भक्त बैठ कर सीताराम..सीताराम के नामों का जप कर रहे है।
4 जून को संत समागम होगा — मां नर्मदा के तट पर स्थित सुंदर धाम आश्रम में विश्व कल्याण के लिए पिछले 76 वर्ष से श्री विष्णू महायज्ञ का आयोजन हो रहा है। छह दिवसीय महायज्ञ का समापन गंगा दशमी पर होता है। इस आयोजन का 77 वां वर्ष है, इसलिए इस बार भी श्री विष्णु महायज्ञ संत महंतों के आशीर्वाद स्वरूप धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजनों का संपन्न होगा। आश्रम से जुड़े भक्तों ने इस वृहद आयोजन की तैयारियां युद्द स्तर पर कर रहे है।भक्तों ने बताया कि पिछले वर्ष की तरह ही भव्य छह दिवसीय आयोजन होगा। जिसमे सुबह-शाम विशाल भंडारा भी चलेगा। प्रतिदिन पहुंचे संत-महंतो का स्वागत किया जाएगा। वही 4 जून को संत समागम होगा,जिसमे बड़ी संख्या में संत-महंत पहुचेगे।
बेहद कठिन होती है तपस्या — महंत नारायण दास महाराज जी ने बताया कि यह तपस्या बेहद कठिन होती है। सुबह और दोपहर में 3 बजे तक कंडों की आग और अग्नि के गोल चक्र के दायरे में साधना में जुट जाते है। ब्रह्मलीन सुन्दर दास महाराज ने 60 वर्षों तक इस तपस्या को किया था। इसके बाद गादीपति श्रीश्री 1008 महंत बालकदास महाराज भी कई वर्षों से अभी तक इस तपस्या को करते आ रहे है। उनके सानिध्य में उपस्थित संत अनोखे तरीके से तपस्या कर रहे है। यह साधना बेहद कठिन होती है।
धुनी में होता है दुर्लभ जड़ी-बूटियों का समावेश — इस साधना के दौरान अगली क्रिया है योगासन,मंत्रजाप, मंत्राहूति और इसके बाद तर्पण किया जाता है तपस्या की पूर्णाहूति में इस क्रिया का विसर्जन होता है। धुनी रमाते समय जलाने वाले कंडों में तिल, जौ, शर्करा, घृत, गुगल, चावल, चंदन, जटामासी, सुगंधबाला, सुगंधकोकिला, कमलगट्टा, देवदार की लकड़ी एवं इंद्र जौ को डाला जाता है। इन सबसे उत्पन्न होने वाला धुंआ जब श्वास के दौरान शरीर में प्रवेश करता है तो दिमाग की शुद्धी मानी जाती है। धुनी की सामग्री में कुछ सन्यासी हिमालय की दुर्लभ जड़ी-बूटी का भी समावेश करते हैं।
चार महीने तप –यह तप बसंत पंचमी से प्रारंभ होकर गंगा दशमी तक चार माह तक चलता है। पश्च्यात गंगा दशहरे पर विष्णु महायज्ञ की पूर्ण आहुति के साथ समापन होता है। तप का उद्देश्य विश्व में सुख शांति समृद्धि बनी रहने का है ।
18 साल में पूरी होती है तपस्या — नारायण दास महाराज ने बताया कि 18 साल तक तप करने के बाद ही यह तपस्या पूर्ण होती है। जो छह चरण में पूरा होता है,पहले चरण को पंच धूनी कहते हैं। यह तीन साल का होता है। बसंत पंचमी के दिन ही इसकी शुरुआत होती है। डेढ़ से तीन घंटे तक
संत तपस्या में लीन रहते हैं। पंचधुनी में वे चार स्थान पर आग जलाते हैं, पांचवें स्थान को सूर्य देव मानते हैं। यह चरण पूरा करने के बाद सप्त धुनी होती है। इसे पूरा करने में भी तीन साल लगते हैं। इसमें संत छह स्थानों पर आग जलाते हैं। सातवां सूर्यदेव की गर्मी लेते हैं। तीसरा चरण बारह और चौथा चरण 84 धुनी का होता है। यह भी तीन-तीन साल चलता है। इसमें संत आग का गोल घेरा बनाकर तपस्या करते हैं। जिसे कोठ या खप्पर बोलते हैं। इसमें संत अपने सिर पर खप्पर जला कर तपस्या करते हैं।18 साल तक तप करने पर यह तपस्या पूर्ण होती है।