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जलवायु परिवर्तन पर संवाद: आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समाधान की ओर एक कदम
दुष्यंत कुमार पांडुलिपि संग्रहालय, भोपाल में हुआ सार्थक आयोजन

भोपाल, 11 मई 2025:
दुष्यंत कुमार पांडुलिपि संग्रहालय में “हमारी दुनिया फाउंडेशन” द्वारा एक अनूठे संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन जैसे जटिल और वैश्विक मुद्दे को आम जनमानस तक सरलता से पहुंचाना तथा उसके समाधान के लिए आध्यात्मिक दृष्टिकोण से लोगों को प्रेरित करना था। इस कार्यक्रम का सफल संचालन हमारी दुनिया फाउंडेशन के संचालक श्री अंकित तिवारी ने किया, जिनकी पहल और दृष्टिकोण ने पूरे आयोजन को एक नई दिशा दी। इस संवाद का प्रमुख संदेश था कि आध्यात्मिक क्रांति के माध्यम से ही जलवायु परिवर्तन जैसे संकट का स्थायी समाधान संभव है।

कार्यक्रम में प्राकृतिक विशेषज्ञ के रूप में डॉ. साक्षी भारद्वाज, अध्यक्ष के रूप में संग्रहालय की निदेशिका श्रीमती करुणा राजौर, विशिष्ट अतिथि के रूप में हरिंद्र चतुर्वेदी (बोध साहित्य – भोपाल टीम), एवं अनेक अन्य महत्वपूर्ण हस्तियां उपस्थित रहीं। कार्यक्रम में 100 से अधिक विद्यार्थियों एवं नागरिकों ने सहभागिता की और इस संकट को समझने तथा उसके समाधान हेतु व्यक्तिगत संकल्प लिया।

कार्यक्रम का स्वरूप और उद्देश्य

कार्यक्रम को दो मुख्य भागों में विभाजित किया गया था:

1. पुस्तक चर्चा:
पहले सत्र में श्री अंकित तिवारी ने आचार्य प्रशांत द्वारा लिखित पुस्तक “क्लाइमेट चेंज” पर आधारित एक संवादात्मक चर्चा का संचालन किया। उन्होंने बताया कि किस प्रकार यह पुस्तक न केवल वैज्ञानिक तथ्यों को उजागर करती है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के पीछे छिपे हुए मानवीय लालच, भौतिकवाद और विकास की भ्रामक अवधारणा को भी चुनौती देती है। अंकित ने उपस्थित जनों को प्रेरित किया कि वे बाह्य हल की बजाय आंतरिक परिवर्तन को प्राथमिकता दें और प्रकृति के साथ संतुलन की भावना को पुनर्जीवित करें।

2. नीतिगत और जमीनी स्तर की समझ:
दूसरे सत्र में डॉ. साक्षी भारद्वाज ने वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन से निपटने की नीतियों, भारत की प्रतिबद्धताओं, तथा स्थानीय क्रियान्वयन की जमीनी हकीकत पर प्रकाश डाला। उन्होंने स्पष्ट किया कि केवल नीतियों से नहीं बल्कि समाज के सक्रिय सहयोग, जागरूकता और नेतृत्व से ही परिवर्तन संभव है।

डॉ. साक्षी भारद्वाज का दृष्टिकोण

डॉ. साक्षी ने बताया कि भारत एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां युवाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्होंने कहा कि यदि हमारे देश के युवा जागरूक होकर जलवायु के संरक्षण के लिए आगे आते हैं, तो न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया को इसका लाभ मिल सकता है। उन्होंने भारत को एक ऐसी शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया जो जलवायु नेतृत्व में वैश्विक मंचों पर अग्रणी भूमिका निभा सकता है।

उन्होंने वैज्ञानिक तथ्यों के माध्यम से बताया कि कैसे कार्बन उत्सर्जन, औद्योगिक विस्तार, अत्यधिक ऊर्जा उपभोग और अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि पर्यावरण को बर्बाद कर रही है। साथ ही, उन्होंने स्पष्ट किया कि आध्यात्मिकता और चेतनापूर्ण जीवनशैली ही इस संकट से निकलने का स्थायी मार्ग है।

कार्यक्रम में आध्यात्मिक समाधान का संदेश

कार्यक्रम का सबसे अनूठा पहलु यह था कि इसमें जलवायु परिवर्तन के समाधान को आध्यात्मिक क्रांति से जोड़कर देखा गया। यह दृष्टिकोण आचार्य प्रशांत की शिक्षाओं से प्रेरित है, जो यह मानते हैं कि जब तक मनुष्य के भीतर लालच, उपभोग और असंवेदनशीलता रहेगी, तब तक कोई भी बाहरी समाधान स्थायी नहीं हो सकता।
अंकित तिवारी ने इसी विचार को केंद्र में रखकर उपस्थित लोगों को संबोधित किया और कहा:

> “जब तक मनुष्य अपने भीतर बदलाव नहीं लाता, तब तक जलवायु परिवर्तन पर जितने भी सम्मेलन या कानून बनें, वे अल्पकालिक ही रहेंगे।”

बोध साहित्य स्टॉल और पुस्तकों का प्रदर्शन

कार्यक्रम के दौरान बोध साहित्य टीम द्वारा आचार्य प्रशांत की पुस्तकों का एक स्टॉल भी लगाया गया, जिसमें क्लाइमेट चेंज, जीवन का धर्म, मन का विज्ञान जैसी पुस्तकों को लोगों ने अत्यधिक रुचि से देखा और खरीदा। यह स्टॉल लोगों को पर्यावरणीय विषयों पर गहराई से सोचने के लिए प्रेरित करता रहा।

स्वयंसेवकों का योगदान और आयोजन की सफलता

इस कार्यक्रम को सफल बनाने में हमारी दुनिया फाउंडेशन के स्वयंसेवकों ने विशेष योगदान दिया।
अंकित बागड़े, आयुष जैन, यश प्रताप सिंह, श्रद्धा जैन, तुषित द्विवेदी, ऋषभ सिंह सेंगर, आस्था सिंह सेंगर और आशी सिंह बघेल जैसे समर्पित स्वयंसेवकों की मेहनत और उत्साह इस आयोजन की रीढ़ रहे।

साथ ही, युवराज सिंह मीणा (कोर कमेटी सदस्य, युवा कर्तव्य भारत – मध्यप्रदेश) ने भी अपनी उपस्थिति से युवाओं को प्रेरित किया और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर युवाओं की सक्रिय भूमिका पर जोर दिया।

प्रतिक्रिया और प्रतिबद्धता

कार्यक्रम के अंत में प्रतिभागियों ने यह संकल्प लिया कि वे जलवायु परिवर्तन को लेकर न केवल स्वयं जागरूक रहेंगे बल्कि अपने समुदाय में भी जागरूकता फैलाएंगे।
“हम पृथ्वी को नष्ट नहीं होने देंगे” — इस भाव के साथ सभी प्रतिभागियों ने प्रतिबद्धता जताई और एकजुट होकर कार्य करने की प्रतिज्ञा ली।

निष्कर्ष: एक नई दिशा की ओर

भोपाल में आयोजित यह संवाद कार्यक्रम इस बात का संकेत है कि अब समय केवल वैज्ञानिक चेतावनियों को सुनने का नहीं, बल्कि आंतरिक और सामाजिक स्तर पर परिवर्तन लाने का है। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए यदि आध्यात्मिक जागरण, नीति निर्माण, जनसहभागिता और युवाओं की नेतृत्व क्षमता एक साथ कार्य करें, तो भारत निश्चित ही इस संकट में विश्व को दिशा दिखा सकता है।

इस आयोजन ने यह सिद्ध किया कि जब संवाद में ज्ञान, संवेदना और जिम्मेदारी की त्रिवेणी बहती है, तब समाज में बदलाव की धारा स्वतः प्रवाहित होती है।

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