
शत्रु भी जिस शासन की प्रशंसा करे वही रामराज्य है: श्याम मनावत*
डॉ. हेडगेवार स्मृति व्याख्यानमाला
रिपोर्ट सुधीर बैसवार
सनावद/ प्रत्येक भारतवासी रामराज्य का आकांक्षी है। स्वामी विवेकानंद,महात्मा गांधी और विनोबा भावे भी रामराज्य के पैरोकार थे। शत्रु भी जिस शासन की प्रशंसा करे वही सच्चे अर्थों में रामराज्य है।
उक्त आशय के प्रेरक विचार सुप्रसिद्ध शिक्षाविद एवं रामचरित मानस मर्मज्ञ श्याम मनावत ने दो दिवसीय डॉ.हेडगेवार व्याख्यानमाला में प्रथम दिवस मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए।
व्याख्यानमाला का शुभारंभ सरस्वती वंदना एवं भारत माता,गुरु गोलवलकरजी एवं डॉ.हेडगेवार के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। व्याख्यानमाला के मुख्य अतिथि सीआईएसएफ बड़वाह के कमांडेंट श्रीकृष्ण सारस्वत एवं कार्यक्रम के अध्यक्ष के रूप में व्याख्यानमाला समिति के अध्यक्ष युवा समाजसेवी संदीप चौधरी मंचासीन थे। मुख्य वक्ता मनावत जी का परिचय
भारत सोलंकी ने देते हुए कहा कि मनावत जी राम कथा के माध्यम से भारत के आदिवासी क्षेत्रों में धर्मांतरण रोकने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं।मनावत जी संपूर्ण राष्ट्र में श्रीराम के कृतित्व और रामचरित मानस के गूढ़ार्थों को सरल शब्दों में बता कर भारतीय समाज को नवीन दिशा प्रदान करने और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक,धार्मिक और आध्यात्मिक मूल्यों की पुनर्स्थापना के लिए प्रयासरत हैं। युवा समाजसेवी भानुप्रतापसिंह सोलंकी ने व्याख्यानमाला की भूमिका पर प्रकाश डाला।
मनावत जी ने अपने संबोधन में कहा कि राष्ट्र की वर्तमान परिस्थितियों में रामराज्य की संकल्पना को साकार करने का प्रयास करना प्रत्येक नागरिक का परम कर्त्तव्य है। उन्होंने कहा कि भारतीय वेदों में आठ प्रकार के राज्यों की चर्चा हुई है। भारत के चारों युगों का इतिहास देखें तो रामराज्य को ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है। आज प्रत्येक भारतवासी रामराज्य का आकांक्षी है। स्वामी विवेकानंद,महात्मा गांधी और विनोबा भावे भी कहते थे कि रामराज्य आना चाहिए। मनावत जी ने श्रीराम के राज्याभिषेक के प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जब वृद्ध चक्रवर्ती सम्राट दशरथ जी ने भरी राजसभा में कांच में देखा और कहा कि मेरे केश श्वेत हो रहे हैं और राज मुकुट भी माथे से झुकने लगा है।दशरथ जी ने कहा कि मंदिर का शिखर, राष्ट्र की ध्वजा और राजा का मुकुट सदैव सीधा होना चाहिए। इसलिए अब इस मुकुट को उतारने का समय आ गया है। महाराज दशरथ ने कहा कि श्रीराम की प्रशंसा शत्रु भी करते हैं और शत्रु भी जिसकी प्रशंसा करे वही राजा बनने के योग्य है। यही रामराज्य का प्रथम लक्षण है। इसलिए जो रामराज्य के लिए सत्ता त्याग दे उसे दशरथ कहते हैं और जो मृत्युपर्यंत सत्ता नहीं छोड़े उसे रावण कहते हैं। श्रीराम के राज्याभिषेक में विघ्न डालने वाली मंथरा ईर्ष्या का प्रतीक है। आज भी मंथराएं परिवार,समाज और राष्ट्र में विघ्न डालने के लिए सक्रिय हैं। इसलिए हमें विघ्नसंतोषी मंथराओं से सतर्क रहना है।
व्याख्यानमाला आयोजन समिति के राकेश गेहलोत ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट किए। इस अवसर पर राजेंद्र साद,देवीसिंह बघेल,पूर्व विधायक हितेंद्रसिंह सोलंकी,डॉ.राजेंद्र पलोड़,अनिता भागचंद जैन,श्याम माहेश्वरी,योगेश नीमा,ओम बंसल,अनिता बंसल, डॉ.श्वेता पंचोलिया,डॉ.सुरेश रांका,डॉ.प्रवीण अधिकारी,गिरधारी सोनी सहित बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।कार्यक्रम का संचालन नयन सक्सेना ने किया और आभार राजुल माहेश्वरी ने माना।अंत में वंदे मातरम का पाठ सरस्वती विद्या मंदिर की छात्राओं द्वारा किया गया।