
श्री रूप रजत गौशाला प्रांगण में श्रीमद् भागवत कथा: द्रौपदी चीरहरण और भीष्म पितामह की झांकी ने श्रोताओं को किया भाव-विभोर
उपखंड रियांबड़ी श्री रूप रजत गौशाला प्रांगण, भैंसड़ा दिनांक: 20 अप्रैल 2025
भारत संवाद/मुरलीधर पारीक/नागौर
श्री रूप रजत गौशाला प्रांगण में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर कथा व्यास पूज्य श्यामसुंदर महाराज श्री बालाजी वाले ने श्रोताओं को द्रौपदी चीरहरण और भीष्म पितामह के चरित्र के प्रसंग सुनाकर भक्ति और नारी शक्ति के स्वाभिमान का संदेश दिया। इस अवसर पर आयोजित मनमोहक झांकियों ने श्रोताओं के मन को भाव-विभोर कर दिया।
📍द्रौपदी चीरहरण: नारी शक्ति और धर्म का संदेश
कथा के प्रारंभ में श्यामसुंदर महाराज ने महाभारत के द्रौपदी चीरहरण के प्रसंग को बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि जब द्युतक्रीड़ा में युधिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगा दिया और दुशासन ने सभा में उनका अपमान करने का प्रयास किया, तब द्रौपदी ने अपनी असहाय स्थिति में भगवान श्रीकृष्ण को पुकारा। भगवान ने उनकी लज्जा की रक्षा कर नारी शक्ति के स्वाभिमान और धर्म के प्रति अटूट विश्वास का उदाहरण प्रस्तुत किया। महाराज ने कहा, “द्रौपदी का चीरहरण केवल एक घटना नहीं, बल्कि यह नारी के आत्मसम्मान और भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण का प्रतीक है। जब मनुष्य धर्म और सत्य के मार्ग पर चलता है, तब भगवान स्वयं उसकी रक्षा करते हैं।”
इस प्रसंग ने श्रोताओं को नारी शक्ति के प्रति सम्मान और धर्म के प्रति निष्ठा का महत्व समझाया। महाराज ने विशेष रूप से महिलाओं से आह्वान किया कि वे अपने स्वाभिमान को कभी न छोड़ें और हर परिस्थिति में भगवान पर भरोसा रखें।
📍कथा का मनमोहक दृश्य भीष्म पिता की मन मोहक झांकी
कथा के अगले भाग में श्यामसुंदर महाराज ने भीष्म पितामह के चरित्र और उनके जीवन की महान झांकी प्रस्तुत की। उन्होंने भीष्म के त्याग, धर्मनिष्ठा और पितृभक्ति की कहानी को विस्तार से सुनाया। भीष्म ने अपने पिता शांतनु की इच्छा पूर्ति के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया और हस्तिनापुर की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। महाराज ने कहा, “भीष्म पितामह का जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा धर्म वही है जो दूसरों के लिए त्याग और समर्पण से भरा हो।”
भीष्म पितामह की झांकी में उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया गया, जिसमें उनकी शपथ, युद्धकौशल और अंतिम समय में श्रीकृष्ण के प्रति उनकी भक्ति को विशेष रूप से चित्रित किया गया। इस झांकी ने श्रोताओं को उनके आदर्शों के प्रति प्रेरित किया और धर्म के प्रति उनके अटूट विश्वास को दर्शाया।
📍श्रोताओं का उत्साह और भक्ति का माहौल
कथा के दौरान गौशाला प्रांगण भक्तों की भीड़ से खचाखच भरा रहा। श्रोताओं ने कथा को पूर्ण एकाग्रता और भक्ति के साथ सुना। द्रौपदी चीरहरण के प्रसंग के दौरान कई श्रोता भावुक हो उठे, और भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का गुणगान करते हुए भक्ति भजनों में डूब गए। भीष्म पितामह की झांकी ने सभी को उनके त्याग और धर्मनिष्ठा के प्रति नतमस्तक कर दिया।
कथा के अंत में कथा व्यास श्यामसुंदर जी महाराज ने श्रोताओं से आह्वान किया कि वे अपने जीवन में भक्ति, धर्म और नैतिकता को अपनाएं। उन्होंने कहा, “श्रीमद् भागवत कथा केवल एक कथा नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। यह हमें सिखाती है कि हर परिस्थिति में भगवान का सहारा लेना चाहिए।”
📍आयोजकों का योगदान प्रशंसनीय
आयोजकों ने कथा के सुचारु संचालन के लिए व्यापक व्यवस्था की थी। गौशाला प्रांगण को भव्य रूप से सजाया गया था, और भक्तों के लिए बैठने, पेयजल और प्रसाद की उत्तम व्यवस्था की गई थी। स्थानीय निवासियों और भक्तों ने आयोजकों के इस प्रयास की सराहना की।
📍कथा के आगामी प्रसंग
कथा के इस चरण का समापन भगवान श्रीकृष्ण और भीष्म पितामह के भजनों के साथ हुआ। आयोजकों ने बताया कि कथा का समापन आगामी दिवसों में होगा, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं और भक्ति मार्ग के महत्व पर प्रकाश डाला जाएगा।
यह कथा न केवल भक्ति का संदेश दे रही है, बल्कि समाज में नारी शक्ति, धर्म और नैतिकता के प्रति जागरूकता भी फैला रही है। श्री रूप रजत गौशाला प्रांगण में चल रही यह कथा श्रोताओं के लिए एक आध्यात्मिक यात्रा सिद्ध हो रही है, जो उन्हें जीवन के सच्चे उद्देश्य की ओर ले जा रही है।
भारत संवाद/मुरलीधर पारीक/रियांबड़ी,नागौर