
श्री रामचन्द्र ही स्वयं श्रीरामकृष्ण के रूप में अवतीर्ण हुए -स्वामी मुक्तिनाथानन्द
लखनऊ संवाददाता अमित चावला
राम नवमी उत्सव बड़े ही धार्मिक माहौल में पारम्परिक एवं पूर्ण रीतिरिवाजो के साथ विधिवत अनुष्ठानिक प्रक्रिया से बुधवार को रामकृष्ण मठ, निराला नगर, लखनऊ में भक्तगणों की भागीदारी एवं उत्साह के साथ मनाया गया।
उत्सव का शुभारम्भ रामकृष्ण मठ के मुख्य मन्दिर में प्रातः 4ः30 बजे मंगल आरती द्वारा हुआ। वैदिक मंन्त्रोंच्चारण एवं गीता पाठ मठ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द महाराज के नेतृत्व में हुआ।
रामनवमी उत्सव में रामकृष्ण मठ के स्वामी रमाधीशानन्द ने चण्डी पाठ किया। विशेष पूजा की शुरूआत स्वामी इष्टकृपानन्दजी द्वारा प्रातः 8ः00 बजे हुई तथा विस्तृत ‘षोड़शोपचार पूजा’ हुआ जिसमें भगवान की पूजा सोलह तरह के विभिन्न पूज्य सामग्रियों द्वारा किया गया उस दौरान भक्तिगीत डा0 बीजू भगवती तथा तबले पर संगत सुमित मल्लिक ने दिया। तदनन्तर हवन किया गया। अनिमेष मुखर्जी ने मधुर स्वर में भजनों की एक श्रृंखला की प्रस्तुति दी उस दौरान तबले पर मुकेश प्रसाद ने संगत दिया। इस अवसर पर प्रभु को पुष्पांजलि अर्पित कर उनका आर्शिवाद प्राप्त किया गया। दोपहर 12 बजे भोगाराति हुई और सुबह का कार्यक्रम देवी की स्तुति के साथ सम्पन्न हुआ तथा उपस्थित भक्तगणों के मध्य अन्नपूर्णा हॉल में प्रसाद दिया गया।
रामनवमी के पावन अवसर पर सायं एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन रामकृष्ण मठ, लखनऊ के प्रेक्षागृह में हुआ कार्यक्रम की शुरूआत डा0 बीजू भगवती के भजन गायन से हुई उस दौरान तबले पर संगत श्री सुमित मल्लिक ने दिया तथा रामकृष्ण मठ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्दजी महाराज ने इस कार्यक्रम में पधारे हुए गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया एवं उनका परिचय दिया।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्री राम की जन्म तिथि और चार युगों की काल गणना पर य.एस.ए. से पधारे श्री नीलेश नीलकंठ ओक के साथ संवाद हुआ।
नीलेश नीलकंठ ओक एक लेखक, शोधकर्ता, प्रसिद्ध और लोकप्रिय वक्ता और कॉर्पोरेट सलाहकार हैं। आप इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड साइंसेज, डार्टमाउथ, एमए, य.एस.ए. में सहायक संकाय हैं। श्री नीलेश जी ने ’महाभारत युद्ध कब हुआ’, ’ऐतिहासिक राम’, ’भीष्म निर्वाण’ जैसी पुस्तकें प्रकाशित की हैं और प्राचीन भारतीय इतिहास पर विस्तार से लिखते हैं। नीलेश भारतीयों को भारतीय सभ्यता की गहरी प्राचीनता से अवगत कराने में मदद करते हैं ताकि वे भारत की भव्य कथा को सही मायने में समझ सकें, प्रस्तुत कर सकें या उसका बचाव कर सकें, जबकि अन्य भारतीय शोधकर्ता ऐसा नहीं करते क्योंकि वे इसे वैज्ञानिक कौशल और तार्किक तर्क के माध्यम से बनाते हैं।
उस दौरान कार्यक्रम का संचालन विवेकानन्द पॉलीक्लीनिक एवं आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ के वरिष्ठ परामर्शदाता एवं पिडियाट्रिक सर्जन डा0 आशुतोष पाण्डेय ने किया उस दौरान प्रश्नोत्तरी सत्र का भी आयोजन किया गया जिसमें भक्तों ने प्रश्नोत्तर के माध्यम से अपने मन में उठ रहे सवालो को पूछकर अपनी जिज्ञासा को शान्त किया। कार्यक्रम की समाप्ति पर डा0 अनामिका पाण्डेय ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।
सांयकाल श्री श्री ठाकुर जी की संध्यारति के पश्चात रामकृष्ण मठ के स्वामी इष्टकृपानन्द द्वारा रामनाम संकीर्तन किया गया उस दौरान उनका तबले पर संगत श्री शुभम राज ने दिया। तदुपरान्त रामकृष्ण मठ, लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज द्वारा रामचरित मानस के अनुसार श्री राम के जन्म कथा विषय पर प्रवचन दिया गया।
स्वामी मुक्तिनाथानन्द महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि ईश्वर के साक्षात अवतार भगवान श्री राम के आगमन का मुख्य उद्देश्य मानव के अन्दर देवत्व गुण जगाना था। स्वामी जी ने कहा कि भगवान मनुष्य शरीर धारण करते हैं ताकि मनुष्य भगवान हो सकें।
रामचरित मानस में रामचन्द्र जी को भगवान के रूप में प्रस्तुत किया वही महर्षि बाल्मीकि जी रामचन्द्र के मूल जीवनीकार थें, वह रामचन्द्र जी को एक आर्दश मनुष्य के रूप में प्रस्तुत किये जो सभी मनुष्यों के लिए हर क्षेत्र में आदर्श के रूप में विराजमान है।
स्वामी जी बताया कि श्री रामचन्द्र जी ने अपने जीवन के उन सभी चुनौतियों को स्वीकार किया जिसको सामान्यतः मानव जाति को सामना करना पड़ता है . स्वामी मुक्तिनाथानंद जी महाराज ने कहा कि भगवान राम का प्राकट्य संपूर्ण जगत के कल्याण के लिए हुआ था। श्री राम ने मर्यादा का अनुसरण करते हुए सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन जिया जिसमें उन्हें अनेक प्रकार के कष्ट भोगने पड़े। इन कष्टों का सामना करते हुए श्री राम ने एक आदर्श प्रस्तुत किया तथा अपनी मर्यादा बनाए रखी, इसीलिए आज पूरा विश्व उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम से पुकारता है।
कार्यक्रम का समापन अनिमेष मुखर्जी द्वारा गाये गये भक्तिगीत से हुआ तथा उपस्थित सभी भक्तों के मध्य प्रसाद वितरण हुआ।