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मधुसूदनगढ़ वन मंडल अंतर्गत नसीरपुर,करोंदी के जंगलों में सागौन तस्करी का बोलबाला, वन विभाग की चुप्पी सवालों के घेरे में

वन विभाग

युवराज सिंह मीणा गुना/मधुसूदनगढ़

मधुसूदनगढ़ वन मंडल अंतर्गत नसीरपुर,करोंदी के जंगलों में सागौन तस्करी का बोलबाला, वन विभाग की चुप्पी सवालों के घेरे में

गुना वन मंडल अंतर्गत मधुसूदनगढ़ वन मंडल के नसीरपुर और करोंदी क्षेत्र की हरी-भरी वनों की सांसें इन दिनों संकट में हैं,वर्षों पुरानी, बहुमूल्य सागौन की लकड़ियां बेखौफ तस्करों के आरी के नीचे दम तोड़ रही हैं – और इस सबके बीच वन विभाग की चुप्पी अब केवल लापरवाही नहीं, बल्कि संदेह बन चुकी है।

अंधाधुंध कटाई, खुलेआम तस्करी – लेकिन प्रशासन मौन क्यों?

स्थानीय सूत्रों और ग्रामीणों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, पिछले कई महीनों से इस क्षेत्र में सागौन के पेड़ों की अवैध कटाई लगातार जारी है पेड़ों को चुपचाप काटा जाता है और फिर उन्हें दोपहिया वाहनों, खासकर मोटरसाइकिलों के ज़रिए जंगल से बाहर निकाला जाता है यह लकड़ी सीधा क्षेत्रीय फर्नीचर बाजारों तक पहुंचती है – जहां इनका इस्तेमाल बिना किसी वैध दस्तावेज के हो रहा है।

यह पूरी प्रक्रिया न केवल वन अधिनियम 1927 का खुला उल्लंघन है, बल्कि यह दर्शाती है कि तस्करों को स्थानीय स्तर पर संरक्षण प्राप्त है – चाहे वो राजनीतिक हो या विभागीय।

वन विभाग की भूमिका पर उठे गंभीर सवाल

वन विभाग का मूल कार्य वनों की सुरक्षा और अवैध गतिविधियों पर नियंत्रण है। लेकिन जब एक के बाद एक दर्जनों पेड़ कट रहे हों, और विभाग को भनक तक न लगे – तो यह या तो उनकी घोर लापरवाही है या फिर सहमति।

क्षेत्र में तैनात रेंजरों, बीट गार्डों की नियमित गश्त कहां है? क्या विभाग को यह जानकारी नहीं कि तस्करी के लिए दोपहिया वाहन कैसे जंगल में प्रवेश करते हैं? अगर जानकारी है, तो कार्रवाई कहां है?

स्थानीय निवासियों में आक्रोश – “हमने कई बार शिकायत की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई”

नसीरपुर और करोंदी के आसपास रहने वाले ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कई बार सीयूजी नम्बर पर वन विभागीय अधिकारियों और स्थानीय प्रशासन को इस अवैध कटाई की जानकारी दी, लेकिन न कोई निरीक्षण हुआ, न कार्रवाई अब हालात यह हैं कि तस्करों का मनोबल इतना बढ़ चुका है कि वे दिन के उजाले में भी लकड़ी ले जाते दिख जाते हैं।

एक ग्रामीण ने नाम न छापने की शर्त पर बताया:
“हमें डर है कि अगर हमने ज्यादा बोला, तो तस्कर हमसे बदला लेंगे और पुलिस या विभाग हमारी कोई मदद नहीं करता।”

पर्यावरणीय खतरा: हरे जंगल हो रहे वीरान, वन्यजीवों का संकट बढ़ा

सागौन जैसे बहुमूल्य वृक्षों की कटाई केवल लकड़ी की चोरी नहीं है – यह पर्यावरणीय असंतुलन का कारण बनता है। जैव विविधता प्रभावित होती है, और स्थानीय वन्यजीवों का निवास उजड़ता है।

वन विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यदि ऐसी कटाई पर तत्काल रोक नहीं लगी, तो आने वाले वर्षों में इन क्षेत्रों का हरियाली से कोई वास्ता नहीं बचेगा।

क्या चाहिए – तत्काल कदम और उच्च स्तरीय जांच

यह केवल रिपोर्टिंग का मामला नहीं है – यह प्रदेश की वन संपदा और आने वाली पीढ़ियों की प्राकृतिक विरासत का सवाल है।
मांग की जा रही है कि:

क्षेत्र में फॉरेस्ट टास्क फोर्स की तैनाती हो

संबंधित वन परिक्षेत्र की विशेष जांच दल से जांच कराई जाए

दोषी अधिकारियों पर निलंबन और मुकदमा दर्ज हो

फर्नीचर बाजारों की गहन जांच की जाए – अवैध सागौन की खरीद-बिक्री रोकने हेतु

निष्कर्ष: क्या वनों की कीमत चंद लाखों की लकड़ी है?

सरकार को तय करना होगा कि क्या वह प्रदेश की वन संपदा की रक्षा करेगी या उसे तस्करों और लापरवाह अफसरों के हवाले छोड़ देगी।
सवाल अब सिर्फ जंगलों का नहीं है – यह नैतिकता, जवाबदेही और न्याय का सवाल है।

आप उपरोक्त फोटो में देख सकते है कैसे नसीरपुर शाहपुर मार्ग से सागौन की खुलेआम तस्करी की जा रही है,प्रशासन का कोई भय ही नहीं

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