
स्वामी मुक्तिनाथानन्द ने विवेकानन्द पॉलीक्लिनिक में की रोगियों की सेवा
लखनऊ .संवाददाता अमित चावला
स्वामी विवेकानन्द की 162वीं जन्मतिथि समारोह के पाँचवें दिन रोगी नारयण की पूजा ‘मरीजो के ईश्वर के जीता जागता रुप समझते हुए पूजा’विवेकानन्द पॉलीक्लीनिक एवं आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ में किया गया।
रोगी नारायण पूजा – ईश्वर की आक्षरिक आराधना से हुई। इसमें रोगी की पूजा भगवान के रूप में की जाती है इस दौरान विवेकानन्द पॉलीक्लीनिक एवं आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ के सचिव स्वामी मुक्तिनाथानन्द महाराज, साधुवृन्द, अस्पताल अधीक्षक, चिकित्सक, कार्मिक अधिकारी डा0 विशाल सिंह, मैट्रन आफिस के कर्मचारी एवं अधिकारीगण, उपचारिकायें व पैरामेडिकल स्टाफ ने रोगियों की साक्षात रूप से नारायण मानते हुए पूजा किया।
सर्वप्रथम संस्थान के आपातकालीन वार्ड में सचिव स्वामी मुक्तिनाथनन्द महाराज ने स्वयं जाकर रोगियों अर्थात नारायण की पूजा अर्चना माला पहनाते हुये पुष्प, चन्दन, तिलक, रोली लगाकर, अगरबत्ती व दिया से आरती की तथा सेब, संतरा, केला के साथ बिस्किट भोग के रूप में अर्पण किया व प्रभु से रोगी को शीघ्र स्वस्थ होने के लिए विनम्र प्रार्थना की। इसमें 10 वार्डो में भर्ती कुल 325 रोगियों की व्यक्तिगत रूप से संस्थान के विभिन्न वार्डो जैसे इमरजेंसी, बाल रोग, स्त्री रोग, गेस्ट्रो, आर्थो, मेडिकल, सर्जिकल में साधु व स्टाफ द्वारा पूजा की गई।
सायंकाल में श्री श्री ठाकुरजी की संध्यारति के उपरांत रामकृष्ण मठ के प्रेक्षागृह में युग द्रष्टा स्वामी विवेकानन्द जी की जयन्ती पर आयोजित कथा में परमपूज्य मानस सम्राट श्री राम किंकर व्यास जी के पट्ट शिष्य श्री उमा शंकर “व्यास” जी ने केवट के पवित्र प्रसंग पर बताया कि केवट के सम्वाद में भगवान का कृपामयी स्वरूप स्पष्ट हुआ है। य़द्यपि केवट की भाषा बड़ी ही अटपटी है परन्तु उसमें उसके हृदय में जो प्रेम रस प्रवाहित हो रहा है उसी की अनुभूति करके भगवान राम आज पहली बार खूब खुलकर (ठठ्ठा मारकर) हसें।
कथा ऋषि कहते हैं कि प्रेम में सराबोर (डुबाए गये) शब्दो को सुनकर करूणामय हस रहे है। यही केवट का उद्देश्य भी था कि सुमन्त के व्यथित हृदय के उद्गार से दुखी प्रभु को एक बार प्रसन्न होकर हसते हुए देख लूँ। यहां पर कथा ऋषि ने बताया कि प्रभु तो लम्बी यात्रा पर जा रहे हैं उन्हें प्रसन्न मन से यात्रा प्रारम्भ करनी चाहिए क्योंकि शुभारम्भ प्रसन्नतापूर्वक होगा तो अन्त में भी प्रसन्नता बनी रहेगी।
अंत में उपस्थित भक्तगणों के बीच प्रसाद वितरण के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।