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MP Foundation Day 2024: मैं मध्य प्रदेश…सुनिए मेरी गौरवगाथा

1 November Madhya Pradesh Sthapna Diwas 2024: मैं देश का हृदय प्रदेश यानी मध्य प्रदेश। आज अपने जन्म के 68 वर्ष पूरे करते हुए 69वें वर्ष में प्रवेश कर रहा हूं। आज मैं अपनी इस गौरवशाली यात्रा की कहानी आपको सुनाना चाहता हूं।

MP Foundation Day 2024: मैं देश का हृदय प्रदेश यानी मध्य प्रदेश। आज अपने जन्म के 68 वर्ष पूरे करते हुए 69वें वर्ष में प्रवेश कर रहा हूं। आज मेरी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं क्योंकि मैं अपने जन्म से लेकर आज की यात्रा को देखता हूं, तो पाता हूं कि मैंने खूब तरक्की की, बहुत आगे बढ़ा और मुझे देश-दुनिया में खूब नाम मिला। आज मैं अपनी इस गौरवशाली यात्रा की कहानी आपको सुनाना चाहता हूं। मन जोड़िए और समवेत होकर मेरी कहानी को सुनिए…

शुभम माहेश्वरी, इंदौर। मुझे अच्छी तरह याद है 1 नवंबर 1956 का वह दिन। इस दिन मध्य प्रदेश के रूप में मेरा जन्म होने वाला था। हुआ यूं था कि इस दिन के करीब 9 वर्ष पहले 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ था। एक देश के रूप में भारत तभी से इस उधेड़बुन में लगा हुआ था कि कैसे बिखरे-बिखरे राष्ट्र को राज्यों की सीमा में बांधे और अपने विकास को दिशा दे। भाषा, भोजन, भूषा, लोक-जीवन से लेकर राजनीतिक खींचतान जैसे अनेक पैमाने थे, जिन पर राज्यों की सीमा तय होनी थी। अंतत: तय हुआ कि राज्यों का गठन भाषा के आधार पर हो। चूंकि देश के मध्य में हिंदी ही प्रमुख भाषा थी, इसलिए मुझे अर्थात मध्य प्रदेश को हिंदी भाषी राज्य के रूप में गठित किया गया। इसी दिन भाषायी आधार पर कर्नाटक, हरियाणा, पंजाब और केरल का भी जन्म हुआ।

दिल्ली भी इसी दिन केंद्र शासित प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आई। इस दृष्टिकोण से ये राज्य मेरे सहोदर भाई-बंधु हैं। जब मेरा गठन हुआ तो पड़ोसी महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात से मेरी बहुत खींचतान चली। ये राज्य मेरे कुछ हिस्सों को अपने में मिलाना चाहते थे, जबकि मैं उन कुछ शहरों को अपने भीतर मिलाना चाहता था, जो आज इन प्रदेशों के पास हैं। नागपुर को लेकर सबसे ज्यादा खींचतान चली, जो महाराष्ट्र के खाते में चला गया। बहरहाल, जो भी हुआ अच्छा हुआ और मैं एक राज्य के रूप में गठित हो गया।

जबलपुर, इंदौर और भोपाल के बीच रस्साकशी में अंतत: भोपाल को मेरी राजधानी चुना गया। मेरा जो पहला नक्शा बना, उसे देखकर देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू बोले – ‘यह तो ऊंट जैसा लगता है। दरअसल, उस समय छत्तीसगढ़ भी मेरा अंग था, जो ऊंट की टांग जैसा लगता था और ग्वालियर-चंबल वाला हिस्सा ऊंट की ऊंची पीठ जैसा…इसीलिए तो नेहरू ने मुस्कुराते हुए मुझे यह संज्ञा दी थी। बहरहाल, 20वीं सदी पूरी होते ही वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ मुझसे विलग हो गया। मुझे लगा जैसे मेरा अंग-भंग हो गया, कलेजे का टुकड़ा टूटकर दूर हो गया। किंतु समय की गति और जनता की जरूरतों के अनुसार छत्तीसगढ़ का अलग होना अवश्यंभावी था।

पंडित जी बने पहले मुख्यमंत्री

मुझे याद है कि 1 नवंबर 1956 को पंडित रविशंकर शुक्ल मेरे प्रथम मुख्यमंत्री बने और सत्ता की कमान कांग्रेस में हाथ में आई। तब भारत की केंद्र सरकार से लेकर अधिकांश प्रदेशों में कांग्रेस की ही सरकारें थीं। अन्य राजनीतिक दल तब शैशव अवस्था में थे। जो भाजपा आज प्रचंड होकर सत्ता में है, तब उसका जन्म नहीं हुआ था। यद्यपि इस पार्टी की विचारधारा तब भारत के हृदय में जड़ें जमा रही थी। मेरा जन्म होते ही मेरा विकास-क्रम आरंभ हुआ। बांध बने, सड़कें बनने लगीं, कारखाने लगे, नगरीय निकायों का गठन हुआ, गांवों में पंचायती राज आया और शुरुआती पांच वर्ष में ही एक राज्य के रूप में मैंने अपनी व्यवस्था को सुचारू बना लिया। राजकाज ठीक से चलने लगा और जनता के काम होने लगे। हालांकि इस दौरान राजनीतिक रूप से कांग्रेस के ही सत्ता में रहने के बावजूद मुख्यमंत्री बदलते रहे।

रविशंकर शुक्ल के बाद, भगवंतराव मंडलोई, कैलाशनाथ काटजू, फिर से मंडलोई, उनके बाद द्वारकाप्रसाद मिश्र… कुल मिलाकर बार-बार मुख्यमंत्री बदले जाने से मैं नेतृत्व के मामले में अस्थिर बना रहा। इस कारण मेरे विकास को जो गति मिलनी थी, वैसी न मिल सकी। इस बीच 1977 में मुझे पहली बार राष्ट्रपति शासन के हवाले कर दिया गया। इसी कालखंड में मैंने 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक आपातकाल की त्रासदी और क्रूरता भी झेली। उस दौर में मेरी स्वतंत्रता का अपहरण हुआ था, मेरे देशप्रेमी बच्चों (जिन्हें बाद में मीसाबंदी कहा गया) को जबरन जेल में ठूंस दिया गया था। कानून के डंडे के आगे मेरा लोकतंत्र विवश हो गया था।

कांग्रेस हारी, जनता पार्टी का उदय

आपातकाल के बाद देश में राजनीतिक परिवर्तन हुआ और मुझ मध्य प्रदेश की सत्ता में भी जनता पार्टी का सूर्य उदित हुआ। 26 जून 1977 को कैलाशचंद्र जोशी जनता पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री बने और राजकाज चलाने का तौर-तरीका बदलने लगा। मैंने भोपाल के वल्लभ भवन से लेकर सतपुड़ा और विंध्याचल में फाइलों का रंग-ढंग और कामकाज की प्राथमिकता को बदलते देखा। फिर वीरेन्द्र कुमार सकलेचा और सुंदरलाल पटवा भी जनता पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री बने। मैं यह सब देख मुस्कुरा ही रहा था कि तभी 18 फरवरी 1980 से 8 जून 1980 तक फिर राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। इसके बाद फिर सत्ता पलटी और अर्जुन सिंह के रूप में कांग्रेस के मुख्यमंत्री ने राजकाज संभाला। इधर, राजनीति करवट बदल रही थी और उधर जनता इस बदलाव को टुकुर-टुकुर देख रही थी।

 

इस समय तक जनता का जीवन कठिन था, कमाई कम थी, अर्थव्यवस्था सुस्त थी। फिर जब 1992 में देश की अर्थव्यवस्था को मुक्त कर दिया गया, तब मुझ मध्य प्रदेश को भी इसका लाभ मिला। उद्योग आने लगे, नए कारखाने लगने लगे। किंतु इसी बीच 16 दिसंबर 1992 को एक बार फिर मुझे राष्ट्रपति शासन के हवाले कर दिया गया। यह अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाए जाने का वर्ष था। तब मैंने देश की राजनीति बदल देने वाली उस घटना को विस्फारित नजरों से देखा था।

साध्वी की सियासत से सधी सत्ता

फिर दिग्विजय सिंह का कार्यकाल आया, जिसमें पंचायती राज तो मजबूत हुआ किंतु सड़क, पानी और बिजली के मामले में मैं बहुत पीछे चला गया। लोगों ने इस कालखंड को ‘अंधकार युग’ कहा। 10 वर्षों के दिग्विजय कार्यकाल के बाद प्रदेश की राजनीति में एक साध्वी का उदय हुआ…ये थीं उमा भारती। 8 दिसंबर 2003 को भारती ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और भाजपा के सत्ता-युग का सूत्रपात किया। किंतु कुछ ही समय बाद राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा के मान-अपमान के सिलसिले में साध्वी ने सत्ता को त्याग दिया और मजदूर से नेता बने बाबूलाल गौर ने मेरी सत्ता संभाली। गौर अभी राज्य के विकास पर गौर कर ही रहे थे कि फिर सत्ता के सूत्रधार हाथ बदल गए।

 

अबकी बार ‘पांव-पांव वाले भइया’ के रूप में पहचाने जाने वाले शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने। चौहान के व्यक्तित्व में निहित संवेदनशीलता, भोलापन और भदेस-भाव को देख राजनीतिक पंडितों ने संदेह जताया कि ‘क्या ये सत्ता संभाल पाएंगे? किंतु शिवराज ने संदेह को ध्वस्त किया और कुछ ऐसी संवेदनशीलता से सत्ता संभाली कि मुझ पर लगा बीमारू राज्य का ठप्पा हटाकर विकासशील राज्य का सम्मान दिलाया। यद्यपि चौहान के मुख्यमंत्री के रूप में अब तक के सबसे लंबे कार्यकाल के बीच में 17 दिसंबर 2018 से 20 मार्च 2020 तक कांग्रेस के कमल नाथ सत्ता में रहे, किंतु घटनाक्रम तेजी से बदला और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने सम्मान को सर्वोच्च रखते हुए कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाना तय किया। यह ऐसी घटना थी, जिसने देश की राजनीति को सियासत का नया पैंतरा दिखाया।

अब तक की यात्रा से प्रसन्न् है मन

बहरहाल, 68 वर्षों की इस गौरवशाली यात्रा में मैंने कई उतार-चढ़ाव देखे। कुछ खट्टे-मीठे, कुछ तीखेकसैले। किंतु मैं निरंतर आगे बढ़ता गया। मैंने लगातार कृषि कर्मण अवार्ड जीते। मेरा लाड़ला बेटा इंदौर देश का सबसे स्वच्छ शहर है। मेरी प्राचीन नगरी उज्जैन का वैभव श्री महाकाल महालोक के कारण विश्व में और बढ़ गया है। मेरे जंगलों में बाघ की दहाड़ और हाथी की चिंघाड़ के साथ अब चीतों की पदचाप भी सुनाई देती है। मैं अपनी अब तक की यात्रा से प्रसन्न् हूं। उम्मीद है मेरी गौरवयात्रा यूं ही चलती रहेगी। अस्तु।

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