
आर्यिका संघ के सानिध्य में भगवान महावीर स्वामी का 2551 वाँ निर्वाणोत्सव मनाया गया।
रिपोर्ट सुधीर बैसवार
सनावद:- भगवान महावीर जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर होकर अंतिम तीर्थंकर हैं। महावीर स्वामी ने कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन ही स्वाति नक्षत्र में कैवल्य ज्ञान प्राप्त करके निर्वाण प्राप्त किया था। जैन धर्म में धन-यश तथा वैभव लक्ष्मी के बजाय वैराग्य लक्ष्मी प्राप्ति पर बल दिया गया है। उक्त उदगार नगर में विराजमान आर्यिका सरस्वती माताजी ने कही।
सन्मति जैन काका ने बताया की नगर में चतुर्मासरत गणिनी आर्यिका सरस्वती माताजी ने अपने उद्दबोधन में कहा की प्रतिवर्ष दीपावली के दिन जैन धर्म में दीप मालिका सजाकर भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया जाता है। कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान महावीर स्वामी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
उसी दिन शाम को श्री गौतम स्वामी को कैवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई थी, तब देवताओं ने प्रकट होकर गंधकुटी की रचना की और गौतम स्वामी एवं कैवल्यज्ञान की पूजा कर के दीपोत्सव का महत्व बढ़ाया।
इसी अवशर पर सबेरे से सर्वप्रथम दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर जी मे पंचामृत अभिषेक पूजन के पश्चात निर्वाण लाड़ू चढ़ाया गया निर्वाण लाड़ू चढ़ाने का शोभाग्य भूपेंद्र कुमार लश्करे परिवार को प्राप्त हूवा वही उसके बाद सुपार्श्वनाथ मंदिर एवम श्री खंडेलवाल आदिनाथ छोटा जैन मंदिर,श्रीमन्दर जिनालय ,महावीर जिनालय सहित पोदनपुर, णमोकार धाम ,मोरटक्का सहित सिद्धवरकूट जी में भी लाड़ू चढाया गया ।एवं शाम को गौतम गंधरण स्वामी का आर्यिका संघ के सानिध्य में पूजन किया गया।
भगवान महावीर के दिव्य-संदेश ‘जियो और जीने दो’ को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वर्ष-प्रतिवर्ष कार्तिक अमावस्या को दीपक जलाए जाते हैं। और भगवान महावीर से कृपा-प्रसाद प्राप्ति हेतु लड्डुओं का नैवेद्य अर्पित किया जाता है। इसे ‘निर्वाण लाडू’ कहा जाता है।
इस अवशर पर सभी समाजजनो एक दूसरे से गले मिलकर बधाई दी इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।