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खास रिपोर्ट :- ऐसे बदल जाता है गुरु के स्पर्श से जीवन

वकील तिवारी की रिपोर्ट

 

 

बड़ामलहरा/ जैन समाज बड़ामलहरा द्वारा इस सदी के महान संत गुरुवर आचार्य भगवन विद्यासागर जी महाराज एवं उनकी प्रति छवि अभिनव आचार्य श्री समयसागर जी महाराज का अवतरण दिवस 17 अक्टूबर शरद पूर्णिमा को बड़े ही हर्ष उल्लास, धूम धाम से मनाया जाएगा इस अवसर पर नगर में शोभा यात्रा निकाली जाएगी साथ ही तीन दिवसीय कार्यक्रम के माध्यम से आचार्य श्री के विद्याधर से विद्यासागर के जीवन पर आधारित बहुत ही सुंदर नाटिका पाठशाला के बच्चों द्वारा प्रस्तुत की जाएगी l

विद्याधर के माता पिता बनने का मिला सौभाग्य 

आचार्य श्री विद्यासागर, आचार्य श्री समयसागर जी के माता पिता बनने का सौभाग्य किस्मत वालों को मिलता है बड़े पुण्य शाली लोगों को अपने जीवन में ऐसा अवसर प्राप्त होता है l आचार्य श्री की माता बनने का सौभाग्य श्री मति मंजुला डेवडिया एवं पिता श्री शील डेवड़िया जी को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ l

 कर्नाटक में जन्में विद्याधर

आचार्य विद्यासागर महराज का जन्म 10 अक्टूबर 1946 शरद पूर्णिमा को कर्नाटक के बेलगांव जिले के सद्लगा ग्राम में हुआ था। उनके पिता मल्लप्पा व मां श्रीमति ने उनका नाम विद्याधर रखा था। कन्नड़ भाषा में हाईस्कूल तक अध्ययन करने के बाद विद्याधर ने 1967 में आचार्य देशभूषण महाराज से ब्रम्हचर्य व्रत ले लिया। इसके बाद जो कठिन साधना का दौर शुरू हुआ तो विद्याधर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनके तपोबल की आभा में हर वस्तु उनके चरणों में समर्पित होती चली गई।

कम उम्र में कठिन साधना

कठिन साधना का मार्ग पार करते हुए विद्याधर ने महज 22 वर्ष की उम्र में 30 जून 1968 को अजमेर में आचार्य ज्ञानसागर महाराज से मुनि दीक्षा ली। गुरुवर ने उन्हें विद्याधर से मुनि विद्यासागर बनाया। 22 नवंबर 1972 को अजमेर में ही गुरुवार ने आचार्य की उपाधि देकर उन्हें मुनि विद्यासागर से आचार्य विद्यासागर बना दिया। आचार्य पद की उपाधि मिलने के बाद आचार्य विद्यासागर ने देश भर में पदयात्रा की। चातुर्मास, गजरथ महोत्सव के माध्यम से अहिंसा व सद्भाव का संदेश दिया। समाज को नई दिशा दी।

ऐसे बदल जाता है गुरु के स्पर्श से जीवन

जैन संत आचार्यश्री विद्यासागर महाराज 29 जून 2016 को दमोह से विहार के दौरान जिस मामूली पत्थर को कुछ पल के लिए आसन बनाया, वह पारस का बन गया था। महज 30 रुपये कीमति पत्थर की बोली सामाज के लोगों द्वारा 11 लाख रुपये तक लगा दी थी, लेकिन चाय-पान की दुकान संचालक ग्रामीण ने इसे अनमोल घोषित कर अपने पास रखा लिया था। जिस व्यक्ति ने आचार्यश्री विद्यासागर के प्रति अटूट भक्ति का परिचय दिया है वह जैन नहीं है। लेकिन उसका मानना है कि देशभर से लोग जहां गुरुवर को अपने शहर बुलाने के लिए वर्षों तक मन्नत करते है, वहीं गुरुवर आज इस गरीब की कुटिया के पास स्वयं पहुंचे है। इससे वह धन्य हो गया है। कल तक मामूली पत्थर रहा अब उसका सबसे खास पत्थर बन गया है

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