
आचार्य पद प्रतिष्ठापन शताब्दी महोत्सव के शुभारंभ अवसर पर ध्वज वंदन किया।
रिपोर्ट सुधीर बैसवार
सनावद ·–जैन जगत के सर्वोच्च मुनिराज बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री 108 शांति सागर जी महाराज के आचार्य पद प्रतिष्ठापन शताब्दी महोत्सव वर्ष के शुभारंभ पर संपूर्ण भारत वर्ष में एक साथ एक दिन एक समय में सभी जैन जिनालयों पर एक साथ शांति सागर ध्वज वंदन किया गया ।
सन्मति जैन काका ने बताया की इस कार्यक्रम के अंतर्गत सनावद नगर में भी नगर में चातुर्मासरत आर्यिका सरस्वती माताजी ससंघ के सानिध्य में श्री पार्श्वनाथ बड़ा जैन मंदिर ,शुपार्श्वनाथ मंदिर ,आदिनाथ मंदिरजी में सभी समाजजनों के द्वारा प्रातः ध्वज वंदन किया गया। एवम आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज के चित्र के समक्ष सभी समाजजनों ने दीप प्रज्वलित किया।
इस अवसर पर आर्यिका अनंतमति माताजी ने अपनी बात रखते हुवे कहा की यदि आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज यदि आज नही होते तो जैन परम्परा में आज ये साधु परम्परा आज नही होती। जैन धर्म अनादिकाल से जीवंत है इसको जीवंत रखने का श्रेय हमारे आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज को ही जाता हे। इस प्रकार आयतनों की रक्षा,जिनवाणी की रक्षा, गुरुओं के लिए मुनियों के लिए भी सभी मार्ग प्रशस्त कर देना ये सभी कार्य आचार्य श्री अपने उपर कष्ट सहन कर के प्रशस्त किया। पंचम काल में साधु कैसे होना चाहिए ओपसर्ग विजेता कैसे होना चाहिए ये सब आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज ने बताया।
इसी क्रम में आर्यिका सरस्वती माताजी ने आचार्य श्री के प्रति अपनी बात रखते हुवे बताया की आचार्य शांति सागर महाराज, चरित्र चक्रवर्ती २०वीं सदी के एक प्रमुख दिगंबर आचार्य हैं। वह कईं सदियों बाद उत्तरी भारत में विचरण करने वालें प्रथम दिगम्बर जैन संत थे। आचार्य शांति सागर का जन्म वर्ष १८७३ में यालागुडा गाँव (भोज), कर्नाटक में हुआ था। उनकें पिता का नाम भीमगौडा पाटिल और माता का नाम सत्यवती था। आचार्य श्री जैसा नाम शांति सागर था वो दिल से भी वैसे ही शांति मुद्रा के धनी थे। आज भारत देश में पिच्छी धारी साधु जो आज देख पा रहे हे वो आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज की ही देन है। जैन धर्म शांति सागर जी महाराज के बताए गए सिद्धांतो पर ही आगे निरंतर गतिशील है आज इस पंचम काल में आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज की परंपरा का निर्वहन करने वाले साधु हे तो वो है वात्सल्य वारिधि पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज । जो की गुरुदेव के बताए गए पद चिन्हों पर आज भी दृढ़ता से उनके नियमों का पालन कर रहे हैं।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन अचिंत्य जैन किया।